दिल्ली एनसीआर में लगातार एक्यूआई लेवल बढ़ा हुआ नजर आता है ऐसे में लोग प्रदूषण से काफी परेशान रहते हैं वहीं अगर बात करें प्रदूषण की तो प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण ट्राली को माना जाता है जो कि किसानों द्वारा चलाई जाती है। अगर बात करें प्रालि की तो किसान जब पराली चलाता है तो वह भूल जाता है कि इससे अन्य लोगों को प्रदूषण का भी सामना करना पड़ सकता है साथ ही स्वास्थ्य में भी काफी हानि होती है।
लेकिन अब किसानों ने पराली ना जलाते हुए अवशेष खड़े हुए चीजों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है बता दे की आम के आम और गुठलियों के भी दाम । पराली जलाकर प्रदूषण फैलाने और कृषि भूमि की उर्वरक शक्ति कम करने के बजाय उपमंडल के समझदार किसान गेहूं की कटाई के बाद अवशेष को भूसे में बदलकर कमाई कर रहे हैं।
इस वर्ष भूसा का भाव ₹950 प्रति क्विंटल मिल रहा है।किसान अपने खेत के साथ-साथ दूसरे के खेत में खड़े अवशेषों का भी भूसा बनवाने को तैयार है। उत्पादन कम होने से इस बार चारे का संकट भी पैदा हो सकता है। ऐसे में किसान भूसा बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।सरकार ने एनजीटी के आदेश पर खेतों में खड़े फसलों के अवशेषों को जलाने पर किसानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए कहा है।
जनवरी माह में बारिश होने से जिले के करीब 2 दर्जन गांव ऐसे हैं जहां पर जलभराव होने से फसल बर्बाद हो गई है। इस बार सरसों का रकबा बढ़ा है गेहूं का रकबा घटा है इसीलिए गेहूं का उत्पादन कम हुआ है। गेहूं के उत्पादन घटने का चारों पर भी असर पड़ेगा जिन किसानों ने हार्वेस्टर मशीन से फसल कटवाई है जयबरी पर से भूसा बनवा रहे हैं। जिन किसानों के पास ज्यादा भूसा है वह भंडारण कर रहे हैं अभी भी मार्केट में चारे का भाव अच्छा मिल रहा है।
कई किसानों ने बताया कि जब कहावत अनुसार अवशेष के भी अच्छे दाम मिले तो कोई इसे क्यों जलाए इस बार धान की पराली का भाव अच्छा मिला है और गेहूं के अवशेष से बना भूसा ₹950 बिक रहा है। वही चारा अड़ती ने बताया कि सर्दियों में भूसा का भाव ₹680 प्रति मन तक पहुंचा था। अभी प्राची की कुट्टी का भी 480रुपए प्रति क्विंटल भाव मिल रहा है।जागरूक किसानों को यह उपाय करनी चाहिए।
गनोड़ा से एक व्यक्ति ने बताया यदि कहीं पर किसी किसान के खेत में अवशेष खड़े हैं। तो उसे जलाने की जरूरत नहीं है। भूसा का संकट पैदा होने की आशंका बनी हुई है।इसलिए अवश्य जलाएं नहीं बल्कि भूसे के रूप में बेचै।
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