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कैनवस में रंग सजाने के साथ अपने आसपास नेचर के रंग भी बिखेर रहे हैं नीरज गुप्ता

आग उगलती गर्मी में पीने का साफ पानी और सांस लेने के लिए साफ हवा के साथ-साथ अगर पेड़ों की ठंडी छांव भी मिल जाए तो सोने पर सुहागा वाली बात होगी। खासकर कंक्रीट के जंगल बनते शहरों में तो पेड़ लगातार कम होते ही जा रहे हैं। पेड़ों को बचाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है नए पौधे लगाना और उन्हें सहेजना। लेकिन महानगरों में सड़क किनारे पौधों को लगाने के बाद उनकी देखभाल और रखरखाव सबसे बड़ी चुनौती है। राजधानी दिल्ली में इस समस्या का एक बेहतर समाधान निकाला दिल्ली आर्ट सोसायटी के अध्यक्ष नीरज गुप्ता ने।

दिल्ली के न्यू राजेंद्र नगर में रहने वाले नीरज गुप्ता आर्टिस्ट होने के साथ-साथ पर्यावरण एक्टिविस्ट भी हैं और हर वक्त उनकी यही कोशिश रहती है कि घरों के आसपास और सड़कों के किनारों को पेड़ों से हरा-भरा कैसे बनाया जाए।

नीरज गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने सड़कों के किनारे गुलमोहर और अमलतास के पौधे रोपना शुरू किया है। छांव देने के साथ-साथ इनके फूलों के चटख रंग ना सिर्फ आंखों को लुभाते हैं, बल्कि उनमें औषधीय गुणों की भरमार भी है। लेकिन ये पौधे रोपने के बाद उन्हें कम से कम तीन-चार साल तक देखभाल और सुरक्षा की जरूरत होती है। अक्सर लोग पौधे लगा तो देते हैं, लेकिन रखरखाव के अभाव में वे सूख जाते हैं।

इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने लोगों को जागरुक करना शुरू किया है। नीरज ने लोगों को बताया कि सड़क किनारे पार्क की गई गाड़ियों की सफाई के बाद वे जो पानी गंदा समझकर फेंक देते हैं, उसे पौधों पर डालकर उन्हें बचाया जा सकता है, ताकि वे बड़े होकर पेड़ बन सकें।

नीरज के इन प्रयासों से इससे कई तरह के फायदे हुए। गंदा समझकर सड़क पर फेंका जाने वाला पानी इस्तेमाल भी हो गया और गर्मी में पौधों को जीवनदान भी मिल गया। वही पौधे बड़े होकर शहर की खूबसूरती भी बढ़ाएंगे और ठंडी छांव भी देंगे।

इस तरह नीरज गुप्ता कलाकृतियों में रंग भरने के साथ-साथ अपने परिवेश में भी नेचर के रंग भर रहे हैं। नीरज अपनी कलाकृतियों में अक्सर आम लोगों की भावनाओं को प्रकृति को जगह देते रहे हैं। महामारी के दौरान दिल्ली के इंडिया हेबिटेट सेंटर में प्रदर्शित की गई उनकी कलाकृति ‘ह्यूमन कैटास्ट्रोफ कोविड 19’ की काफी चर्चा हुई थी। अपनी उस कलाकृति के जरिये नीरज गुप्ता ने महामारी में होने वाली मौतों, मानवीय पीड़ा और पीड़ितों के दुख सहने की क्षमताओं को प्रदर्शित किया था।

Rajni Thakur

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