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जुनून हो तो ऐसा- फुटपाथ पर रहने वाले प्रवासी की बेटी ने हरियाणा बोर्ड में प्राप्त किए 80%

अवसर अक्सर कड़ी मेहनत के भेस में छिपे होते हैं, इसलिए ज्यादातर लोग इन्हें पहचान नहीं पाते। इंसान जो चाहे अपनी जिंदगी में हासिल कर सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरत है कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास की। इन दोनों के बल पर इंसान अपनी जिंदगी में कड़ी से कड़ी चुनौतियों का आसानी से सामना कर सकता है एवं अपने लक्ष्य को पा सकता है।

तो आइए जानते हैं दसवीं कक्षा की पूजा रानी के बारे में । उनके पिता मध्य प्रदेश के प्रवासी मजदूर है। पूजा अपनी तीन बहनों के साथ रोहतक के कॉलोनी में एक 10*10 केटल शेड में रहती हैं। लेकिन इसके बावजूद भी पूजा ने हरियाणा बोर्ड की परीक्षा में 80% अंक प्राप्त किए जो कि एक बड़ी उपलब्धि के समान है।

जुनून हो तो ऐसा- फुटपाथ पर रहने वाले प्रवासी की बेटी ने हरियाणा बोर्ड में प्राप्त किए 80%जुनून हो तो ऐसा- फुटपाथ पर रहने वाले प्रवासी की बेटी ने हरियाणा बोर्ड में प्राप्त किए 80%

कैसे पूजा की जिंदगी आम लोगों के जीवन के मुकाबले कठिन है?

पूजा के पिता कैलाश कुमार मध्य प्रदेश के प्रवासी मजदूर है। जी माता और पिता दोनों ही अशिक्षित हैं और दिन भर अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए दिन भर मेहनत करते हैं। पूजा रानी ने सामान्य शिक्षा पाने के लिए भी कई मुश्किलों का सामना किया। 5 वर्ष पहले उन्होंने गांधी स्कूल से अपनी शिक्षा की शुरुआत की। और कुछ समय बाद तूने घर पर ही पढ़ाई की। उस दौरान घर पर बिजली ना होने पर उन्हें कई बार स्ट्रीट लाइट के नीचे भी पढ़ना पड़ा। इसलिए, उनका कहना है कि मैट्रिक्स के परिणाम उनके लिए बहुत महत्व रखते है।

इस पर पूजा के माता-पिता की क्या प्रतिक्रिया थी

पूजा के माता पिता अपनी बेटी की इस उपलब्धि पर बहुत गर्वित महसूस कर रहे हैं। इस समय दोनों साथ में आसमान पर है। पूजा का कहना है कि वह खास तौर पर अपनी मां के लिए बहुत खुशियां जो बेटियों की पढ़ाई के लिए खूब मेहनत करती है।

इस पर पूजा के पिता का कहना है कि उनकी बेटियों ने हमेशा से किताबों में ही अपना जीवन ढूंढा है। जब भी वह काम पर जाते हैं या काम से आते हैं तो अपनी बेटियों को किताबों में खोया हुआ पाते हैं।

भविष्य में प्रवासी मजदूरों के बच्चों को पढ़ाना चाहती हैं पूजा

पूजा कहती है – “गांधी स्कूल जैसे संस्थान उन लोगों के लिए बहुत ही सहायक साबित हुए जो अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए स्कूलों में दाखिला नहीं करा सकते।” ऐसे स्कूल पूजा जैसे कई बच्चों के लिए एक आशा की किरण के समान है। पूजा ने कहा कि वह बड़ी होकर भविष्य में एक टीचर बनना चाहती है।

टीचर बनकर पूजा अपने जैसे उन बच्चों को पढ़ाना चाहती है जो पैसों की तंगी या मार्गदर्शन के अभाव में अशिक्षित रह जाते हैं।

Written by -Vikas Singh

Avinash Kumar Singh

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Avinash Kumar Singh
Tags: exam results

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