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फरीदाबाद के निजी स्कूल चला रहे लूटने का धंधा CBSE के नियमों को नकारते हुए चला रहे अपनी मनमानी

फरीदाबाद में स्कूलों की मनमानी को लेकर मुख्यमंत्री के तेवर शिकायत समिति की बैठक में साफ नजर आए। इसे उन्होंने लेकर नीति बनाने को कहा। अगले ही दिन रविवार को हरियाणा अभिभावक एकता मंच ने प्राइवेट स्कूलों की मनमानी को लेकर सीएम मनोहर लाल व शिकायत समिति को शिकायत दी। आरोप है कि स्कूलों ने नियमों के विपरीत प्री नर्सरी, नर्सरी, केजी, एलकेजी और यूकेजी जैसी कक्षाएं शुरू कर दी हैं। इन कक्षाओं में नामांकन के नाम पर अभिभावकों से लाखों रुपये लिए जाते हैं। अभी तक किसी स्कूल का ऑडिट नहीं हुआ है और ऑडिटर को भुगतान नहीं हुआ है।

 

फरीदाबाद का एक भी निजी स्कूल नहीं है ऑडिट

अभिभावक एकता मंच के प्रदेश महासचिव कैलाश शर्मा ने कहा कि उन्होंने रविवार को स्कूल की मनमानी की पूरी जानकारी मुख्यमंत्री और शिकायत समिति को दे दी है, ताकि बनाई जाने वाली नीति में इनका भी ध्यान रखा जाए। मंच के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट ओपी शर्मा ने कहा कि हरियाणा सरकार ने वर्ष 2014 में प्रत्येक संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में शुल्क एवं निधि नियामक समिति का गठन किया था, ताकि स्कूलों की मनमानी को रोका जा सके और आय-व्यय पर रोक लगाई जा सके। स्कूलों का ऑडिट किया जा सकता है। उन्हें आरटीआई से पता चला है कि संभागीय आयुक्त फरीदाबाद ने आज तक फरीदाबाद के किसी भी निजी स्कूल का ऑडिट नहीं किया है। परिजनों की शिकायत पर भी कोई उचित कार्रवाई नहीं की गई है। इतना ही नहीं बिना ऑडिट कराए सरकारी खजाने से ऑडिट के लिए नियुक्त चार्टर्ड अकाउंटेंट को पांच लाख रुपये दे दिए गए हैं।

 

नरेंद्र परमार, प्रधान, फरीदाबाद प्रोग्रेसिव स्कूल्स कॉन्फ्रेंस

“जब से प्राइवेट स्कूल सिस्टम शुरू हुआ है, तब से ही नर्सरी, एलकेजी और यूकेजी की कक्षा चल रही हैं। स्कूल संचालकों ने यह नया सिस्टम शुरू नहीं किया है। वहीं नए शैक्षणिक सत्र में ही फीस ली जाती है। कई महीने पहले फीस लेने का सिस्टम नहीं है और न ही पैरंट्स देते हैं। यानी प्राइवेट स्कूल संचालक नियमों के खिलाफ कोई कार्य नहीं करते।”

मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा गया है कि हरियाणा शिक्षा नियमावली के अनुसार, क्लास वन से पहले सिर्फ दो प्री प्राथमिक क्लास हो सकती हैं। इसके बावजूद स्कूल प्रबंधकों ने कमाई के चक्कर में प्री नर्सरी, नर्सरी, एलकेजी व यूकेजी नाम से 3-4 क्लास बना रखी हैं। इनके लिए अपनी मर्जी से दाखिला पॉलिसी व प्रवेश आयु रखी हुई है। इन प्राइमरी क्लासों में स्कूल प्रबंधक एक अप्रैल से शुरू होने वाले शिक्षा सत्र से पांच-छह महीने पहले ही नए दाखिला कर लेते हैं। इसके लिए अभिभावकों से 50 हजार से एक लाख रुपये तक एडवांस में वसूल लेते हैं। जबकि नियम है कि दाखिला देने के बाद एडवांस में सिर्फ एक टोकन राशि ली जाए। स्कूल प्रबंधक दाखिला फॉर्म 500 से 1000 रुपये में बेचकर भी कमाई कर रहे हैं। नियम यह भी है कि दाखिला नजदीक के बच्चों को पहले दिया जाए और सीट बचने पर ही दूसरे क्षेत्र के बच्चों को एडमिशन दें। स्कूल प्रबंधक उन्हीं अभिभावकों के बच्चों को दाखिला देते हैं, जिनकी शैक्षणिक व आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, जो मोटा डोनेशन देते हैं।

 

लाखों रुपए में होता है एडमिशन

मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा गया है कि हरियाणा शिक्षा नियमावली के अनुसार कक्षा एक से पहले केवल दो प्री-प्राइमरी कक्षाएं हो सकती हैं। इसके बावजूद स्कूल प्रबंधकों ने पैसे कमाने के चक्कर में प्री नर्सरी, नर्सरी, एलकेजी और यूकेजी के नाम से 3-4 कक्षाएं लगा दी हैं। उनके लिए प्रवेश नीति और प्रवेश आयु उनकी पसंद के अनुसार रखी जाती है। इन प्राथमिक कक्षाओं में एक अप्रैल से शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पांच-छह महीने पहले स्कूल प्रबंधक नए दाखिले ले लेते हैं। इसके लिए वे अभिभावकों से 50 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक एडवांस लेते हैं। जबकि नियम यह है कि प्रवेश के बाद केवल एक टोकन राशि ही एडवांस में ली जानी चाहिए। स्कूल प्रबंधक भी प्रवेश फार्म 500 से 1000 रुपये में बेचकर कमाई कर रहे हैं। नियम यह भी है कि आसपास के क्षेत्र के बच्चों को पहले प्रवेश दिया जाता है और सीट बच जाने पर ही अन्य क्षेत्रों के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है। स्कूल प्रबंधक उन माता-पिता के बच्चों को प्रवेश देते हैं जिनकी शैक्षिक और आर्थिक स्थिति मजबूत है, जो मोटा दान करते हैं।

 

जाने सीबीएसई के नियम

ओपी शर्मा ने कहा कि CBSE का नियम है कि स्कूल प्रबंधक ट्यूशन फीस के अलावा राज्य सरकार की ओर से तय फंडों में ही अभिभावकों से फीस लें। हरियाणा सरकार ने सिर्फ पांच से छह फंड्स ही बना रखे हैं, जबकि स्कूल प्रबंधक हर साल दाखिला शुल्क, विकास शुल्क, कैपिटेशन फीस, परीक्षा, मैगजीन, इंश्योरेंस मेडिकल कॉशन मनी, बिल्डिंग फंड आदि नामों से दर्जनों गैरकानूनी फंड के नाम पर वसूली कर रहे हैं। कई स्कूलों ने कार्रवाई से बचने के लिए ट्यूशन फीस में ही कई फंडों को मर्ज करके कंपोजिट फीस नाम से एक अलग ही श्रेणी बना ली है। अभिभावकों को मांगने पर भी ट्यूशन फीस का ब्रेकअप नहीं दिया जाता।

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