गांव सिरोही में बने कृत्रिम झील में डूबकर रविवार को दिल्ली संगम विहार में दो युवकों की मौत हो गई। सोमवार को पुलिस ने दोनों के शव पोस्टमार्टम कराकर स्वजन को सौंप दिए। हर साल गर्मियों में इन जिलों में नहाने के दौरान किसी ना किसी की जान चली ही जाती है।
यह सिलसिला पिछले 30 सालों से चल रहा है। प्रशासन दावा करता है कि युवाओं को जिलों की तरफ जाने से रोकने के पुख्ता बंदोबस्त किए गए हैं। मगर ऐसा नहीं है कि सभी जिलों में सभी बड़ी संख्या में युवा नहाने पहुंच रहे हैं। गांव सिरोही इसमें भी रविवार को काफी संख्या में लोग नहाने पहुंच गए थे। लोगों ने फिर झीलो तक पहुंचाने के रास्ते बना लिए हैं।
दिल्ली एनसीआर के युवा गूगल पर इन जिलों के बारे में सर्च करते हैं और इनकी सुंदर तस्वीर देखकर गूगल मैप के सहारे वहां मौज मस्ती करने के लिए पहुंच जाते हैं। बाद में इन जिलों की गहराई का अनुमान नहीं होता और नहाने के दौरान इन में डूब जाते हैं। यह कृत्रिम झील साथ खदानों में एक समूह है। स्थानीय लोग बताते हैं कि 1990 तक अरावली में खनन का कार्य धड़ल्ले से चला वर्ष 1991 में खनन पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया, जिसके बाद फरीदाबाद गुरुग्राम रोड किनारे आधा दर्जन से अधिक खदानें भूजल को छू गई और यहां प्राकृतिक रूप से नाले रंग का साफ पानी निकल आया जो धीरे-धीरे विशालकाय झील में तब्दील हो गया।
झीलों की गहराई का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल हो गया है। यहां की सुंदरता देख साल 1991 के बाद से दिल्ली समेत पूरे एनसीआर के लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ घूमने फिरने आने लगे या दुर्घटनाओं का आंकड़ा भी बढ़ता चला गया। कभी कोई झील में नहाने के दौरान डूब जाता तो कोई सेल्फी लेने के चक्कर में इसमें गिरकर अपनी जान गवा बैठता था।
यहां पर हर साल औसतन 3 लोगों की डूबकर मौत होती है। साल 1991 में खनन का काम बंद होने के बाद अब तक करीब 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। यहां पर तैरना प्रतिबंधित है और प्रशासन की तरफ से लगातार चेतावनी दी जाती रही है। परंतु बावजूद इसके यहां आने वाले पर्यटक चेतावनी को ना सिर्फ नजरअंदाज करते हैं बल्कि तैरने के लिए झील में कूदकर अपनी जान गवा बैठे हैं। गर्मियों के दौरान यहां आने वालों की संख्या ज्यादा होती है।
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