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मन्नत पूरी होने के बाद Haryana के इस मंदिर में पिछले 300 सालों से श्रद्धालु चढ़ा रहे है पंखा, यह है इसके पीछे का कारण 

आपने अपने अब तक के जीवन में अपनी मन्नत पूरी होने के बाद मंदिर में फल, फूल और मिठाई चढ़ाई होंगी, लेकिन आज हम आपको हरियाणा के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएँगे जहां पर श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने के बाद फल, फूल और मिठाई नहीं बल्कि पंखा चढ़ाते है। दरअसल हम बात कर रहे हैं हरियाणा के झज्जर जिले के बाबा प्रसाद गिरी मंदिर की, यहाँ पर श्रद्धालु पिछले 300 सालों से अपनी मन्नत पूरी होने के बाद दुल्हेंडी के दिन पंखा चढ़ाते आ रहे हैं। इसके अलावा यहां पर छत पंखे, कूलर और AC भी चढ़ाए जाते है।

मन्नत पूरी होने के बाद Haryana के इस मंदिर में पिछले 300 सालों से श्रद्धालु चढ़ा रहे है पंखा, यह है इसके पीछे का कारण मन्नत पूरी होने के बाद Haryana के इस मंदिर में पिछले 300 सालों से श्रद्धालु चढ़ा रहे है पंखा, यह है इसके पीछे का कारण 

बता दें कि श्री श्री 1008 सिद्ध बाबा प्रसाद गिरी मंदिर का इतिहास बहुत साल पुराना है। इस मंदिर का यहाँ के महंत बाबा प्रसाद गिरी महाराज जी के नाम पर रखा गया था। उस समय में बाबा प्रसाद गिरी महाराज की एक सेविका हुआ करती थी, जब उसके पति की मृत्यु हो गई तो बाबा प्रसाद गिरी महाराज ने अपने प्राण उसके शरीर में डालकर खुद यहां पर जीवित समाधि ले ली थी। बस तब से ही लोगों ने बाबा प्रसाद गिरी मंदिर की जीवित समाधि पर पंखे चढ़ाने शुरू कर दिए, क्योंकि उन्हें पंखे बहुत ही ज्यादा पसंद थे।

इस मंदिर के बारे में और जानकारी देते हुए एडवोकेट पंकज शर्मा ने बताया कि,”करीब 300 साल पहले इस मंदिर में बिमला नाम की एक सेविका रोजाना मंदिर में सेवाभाव के नजरिए से आती थी। उस महिला के पति फौज में थे, एक बार उनके पति फौज से छुट्टी आए हुए थे।इस दौरान पड़ोसियों ने उनके सामने उनकी पत्नी और बाबा प्रसाद गिरी महाराज के बारे में अनाप- शनाप बाते की, इस दौरान उनके पति की मौत हो जाती है, तो पड़ोसी ताना मारते हुए कहते हैं कि तुम्हारी वजह से ही तुम्हारे पति की मौत हुई है।”

इसी के साथ उन्होंने बताया कि,”बिमला यह बात प्रसाद गिरी महाराज जी को बताती है, तो बाबा प्रसाद गिरी महाराज उनको अपने पति की शव यात्रा को मंदिर के आगे से लेकर जाने के लिए कहते है। उसके बाद, बिमला घर जाकर यह बात बताती है तो परिवार वाले उसकी बात को स्वीकार कर लेते है। जब परिवार वाले उसकी शव यात्रा को मंदिर के आगे से लेकर जाते है, तो बाबा प्रसाद गिरी महाराज उनके शव को नीचे रखवाकर उनके ऊपर जल के छिड़काव व अपने चिमटे से उसको जीवित कर देते है और अपने बचे हुए प्राण उसके अंदर डाल देते है। इस दौरान धरती फटती है और बाबा प्रसाद गिरी महाराज उसमें समा जाते है।”

“इतना ही नहीं बाबा प्रसाद गिरी महाराज मंदिर के अंदर जीवित समाधि ले लेते है। सोमवार के दिन बाबा प्रसाद गिरी महाराज ने जीवित समाधि ली थी और उसी दिन दुल्हेंडी का भी पर्व था। जिसके बाद से श्रद्धालु यहां पर सोमवार के दिन अपनी मनोकामना पूरी होने की मन्नत मांगने आते है और मन्नत पूरी होने के बाद यहां पर दुल्हेंडी के दिन पंखे चढ़ाते है। 

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