जयंती विशेष चंद्रशेखर आजाद: आजादी की लड़ाई में बहुत सारे क्रांतिकारियों ने समय-समय पर अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई है, और अपनी ताकत से अंग्रेजों को भारतीय होने का एहसास भी कराया है। ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे चंद्रशेखर आजाद।
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ में हुआ था। चंद्र शेखर आजाद अपना शिक्षा पूरी करने के लिए काशी गए थे आजादी के समय काशी क्रांतिकारियों की धरती मानी जाती थी।
उस समय बनारस की गलियां आजादी की लड़ाई का अखाड़ा बन गया था, और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से लेकर घाटों के पहलवान अंग्रेजों से दो-दो हाथ करने और अपने प्राणों की बलि देने के लिए तैयार थे ।
इसी दौरान चंद्रशेखर आजाद 1921 में संस्कृत की शिक्षा लेने के लिए, काशी विश्वविद्यालय गए थे,इस काशी विश्वविद्यालय की प्रशंसा उनको उनके पिताजी ने सुनाई थी। अंग्रेजो के खिलाफ उस समय असहयोग आंदोलन शुरू हो चुका था, और चंद्रशेखर आजाद मात्र 15 साल के थे।
तथा उस समय धरना देते के दौरान चंद्र शेखर आजाद अंग्रेजों द्वारा पहली बार पकड़े गए थे। चंद्रशेखर आजाद के निकट दोस्त रहे विश्वनाथ, ने अपने लिखित आजाद की जीवनी अमीर शहीद चंद्र आजाद (सुधीर विद्यार्थी द्वारा संपादित)में उन्होंने लिखा है कि, बनारस में चंद्रशेखर आजाद राष्ट्रभक्त हो गए थे और अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठा रहे थे, और इस दौरान चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता संग्राम में उतरने के लिए प्रेरित हो गए।
आज़ाद के शिक्षा लेने का काम यहां से राज भक्ति में तब्दील हो गया।काशी में चंद्रशेखर आजाद की पहली मुलाकात क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्ता से हुई, इसके बाद आजाद ने ससस्त्र क्रांति के माध्यम से देश को आजाद करने के लिए एक युवाओं का दल बना लिया।
इस दल में बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह, सुखदेव, सचिंद्र नाथ, राजगुरु, बिस्मिल, अशफाक, जयदेव, शिव प्रसाद गुप्त, दामोदर स्वरूप जैसे युवा नेता शामिल थे, जो अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाने लगे।
असहयोग आंदोलन के दौरान युवाओं का जोश काफी तेज था, इस दौरान संपूर्णानंद जी ने आजाद को कोतवाली के सामने कांग्रेस की एक नोटिस लगाने का जिम्मा सौंपा। अंग्रेजी सेना की कड़ी सुरक्षा के बावजूद अपनी पीठ पर नोटिस हल्का से चिपका कर निकल गए, और कोतवाली की दीवार से सटकर खड़ा हो गए।पहरा देने वाले सिपाही से हालचाल पूछते रहे,इतने देर में सिपाही के जाते ही आजाद भी निकल गए।बाद में नोटिस देकर पूरे शहर में हो हंगामा मच गया, और आजाद की तारीफ होने लगी।
पोस्टर लगाने के बाद उनको पकड़ लिया गया ,ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, ज्वाइंट मजिस्ट्रेट ने जब से उनका नाम पूछा तो, उन्होंने जवाब दिया आजाद पिता का नाम पूछा तो स्वाधीनता बताया और घर का पता जेल बताया।इस घटना के बाद से मजिस्ट्रेट गुस्सा में आ गया वेद से मारने की निर्मम सजा सुना दी।
सेंट्रल जेल में जब उनको मारा जा रहा था तो, हर मार पर वह गांधी जी की जय, भारत माता की जय, वंदे मातरम का नारा हंसते हुए लगाते थे।जीवनी में मिली जानकारी के अनुसार, सेंट्रल जेल से लहूलुहान होने के बाद खूंखार जेलर ने आजाद को तीनों ने पैसे दिए जिसे चंद शेखर आजाद ने जेलर के मुंह पर फेंक दिया, और खुद को घसीटते हुए आगे निकल गए।
इस घटना के बाद आजाद की चारों तरफ तारीफ होने लगी,उनकी तारीफ को सुनकर बनारस के पंडित गौरीशंकर शास्त्री आजाद को अपने घर लाए, और उनको रहने और भोजन का भी प्रबंध किया। इसके बाद ज्ञानवापी पर काशी वासियों ने फूल माला से उनका स्वागत किया, भीड़ जब उन्हें देख नहीं पा रही थी तो अभिवादन के लिए उन्हें मेज पर खड़ा होना पड़ा। इसके बाद चंद्रशेखर तिवारी आजाद के उपनाम से प्रसिद्ध हो गए।
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