नई शिक्षा नीति को लेकर शिक्षकों और अधिकारियों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से जे.सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद ने आज नई शिक्षा नीति में निहित विभिन्न महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा के लिए परिचर्चा सत्र का आयोजन किया।
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आयोजित इस सत्र को अकादमिक मामलों के डीन डॉ. विकास तुर्क द्वारा संबोधित कियाा गया। सत्र की अध्यक्षता कुलपति प्रो दिनेश कुमार ने की। डॉ. तुर्क ने नई शिक्षा नीति में निहित प्रावधानों को विस्तार से समझाया तथा विश्वविद्यालय स्तर पर इसके क्रियान्वयन को लेकर चर्चा की। उन्होंने नीति के प्रावधानों को लेकर संकाय सदस्यों द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर भी दिया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी डीन, विभागाध्यक्ष, संकाय सदस्य और अधिकारी उपस्थित थे।सत्र को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो. दिनेश कुमार ने नीति में सुझाये गये उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिए डीन और विभागाध्यक्षों से पांच वर्षीय रणनीतिक कार्ययोजना तैयार करने को कहा।
उन्होंने नीति के प्रत्येक पहलू को लेकर बेहतर समझ एवं क्रियान्वयन को लेकर जागरूकता लाने के लिए संवाद सत्र एवं वेबिनार आयोजित करने के निर्देश दिये।
सत्र में अवगत कराया गया कि विश्वविद्यालय ने पूर्व में वाईएमसीए संस्थान के एडवांस डिप्लोमा धारकों को बीटेक की डिग्री प्रदान करने के लिए एक वर्ष का ब्रिज कोर्स शुरू किया है जो नीति में उल्लिखित चार वर्षीय स्नातक डिग्री प्रोग्राम की नई संरचना के अनुरूप है, जिसमें मल्टीपल एंट्री एवं एग्जीट प्रणाली के प्रावधान है।
इसी तरह विश्वविद्यालय ने यूजी और पीजी स्तर पर विभिन्न अंत-विषयक पाठ्यक्रम शुरू किए हैं और अंतःविषयक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए एक अलग अंतःविषय संकाय का गठन किया है, जो नीति में निहित दृष्टिकोण का समर्थन करता है। नई शिक्षा नीति में 5 वर्षीय एकीकृत स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री पाठ्यक्रम के कदम की सराहना करते हुए यह सुझाव दिया गया कि विश्वविद्यालय को इंटीग्रेटेड बीटेक एवं एमटेक पाठ्यक्रम शुरू करना चाहिए।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 3.01 रेटिंग से ऊपर की नैक मान्यता वाले शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू करने की मंजूरी देने संबंधी मानदंडों का उल्लेख करते हुए कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए यूजीसी के मानदंडों को पूरा करता है। इसलिए, विश्वविद्यालय को ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए आवेदन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति भी ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग की वकालत करती है।
विश्वविद्यालय द्वारा डिजिटल लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम और ई-लाइब्रेरी पोर्टल जैसे प्लेटफार्म को विकसित कर इस दिशा में पहल की जा चुकी है तथा इस मामले में अन्य शिक्षण संस्थानों से काफी आगे है, जिसका विश्वविद्यालय को लाभ उठाना चाहिए।सत्र में इस बात की सराहना की गई कि विश्वविद्यालय जोकि वर्ष 2015 से पहले केवल इंजीनियरिंग के ही अधिकांश पाठ्यक्रमों को चला रहा था, में विगत पांच वर्षों में विज्ञान और कला विषयों से नये पाठ्यक्रम शुरू होने से पाठ्यक्रमों में विविधता आई है।
सत्र में सुझाव दिया गया कि विश्वविद्यालय को निकट भविष्य में लिबरल आर्ट्स से अधिक पाठ्यक्रम लाने चाहिए। सत्र में डिजिटल मानविकी की अवधारणा पर भी चर्चा की गई। यह अवगत कराया गया कि पारंपरिक मानविकी विषयों जैसे साहित्य, इतिहास और दर्शनशास्त्र में कम्प्यूटेशनल उपकरण और विधियों का अनुप्रयोग इन दिनों लोकप्रिय हो गया है। इस प्रकार, इंजीनियरिंग और विज्ञान पृष्ठभूमि के विद्यार्थी डिजिटल मानविकी का लाभ उठा सकते हैं।
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