मैं हूँ फरीदाबाद :- नमस्कार! मैं फरीदाबाद जो आज कल की बारिश के बाद एक टापू बन गया है। जिन लोगों को शिकायत रहती थी कि कभी भी उन्होंने समुद्र नहीं देखा उनकी ख्वाहिश भी पूरी हो गई। पर्यटन विभाग वालों के लिए तो यह पल स्मरणीय होना चाहिए आखिर एक रात में उन्हें बना बनाया ‘बीच’ जो मिल गया।
मुझे समुद्र तट में तब्दील करने के लिए मैं प्रशासन और मेरे निज़ाम का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। मैं आभारी हूँ टूटी सड़कों का, जगह-जगह लगे कूड़े के ढेर का और आलसी अफसरों का जिन्होंने मेरी खूबसूरती पर चार चाँद लगा दिए। आजकल के ज़माने में कौन करता है इतना दूसरों के लिए और फिर मैं तो गूंगा भी हूँ। बिना बोले मुझे ये तोहफा देने के लिए धन्यवाद।
पर पता नहीं क्यों मेरी आवाम दुखी हो राखी है। बताओ, सावन के आखरी कुछ दिन बचे हैं और ये लोग बरखा रानी को देख कर खीज रहे हैं। हाँ-हाँ जानता हूँ कि सड़कें टूटी हुई हैं, जगह-जगह कूड़े का अम्बार लगा हुआ है, सारी जगह कीचड़ ने पैर पसार रखे हैं, जिसकी वजह से आप लोगों को परेशानी हो रही है।
पर इसका ये मतलब नहीं कि आप बिलखना शुरू करदेंगे। अरे भई ‘आत्मनिर्भर’ बनिए। बात-बात पर प्रशासन के पीछे क्यों पड़ जाते हैं आप लोग? अब कल की ही बात ले लीजिये, मैंने देखा कि कई घरों में बिजली 8 घंटे से गोल है और लोग परेशान हो रहे हैं।
गुस्से से तिलमिलाकर वो बिजली विभाग में फ़ोन घुमाने लग गए। जब कॉल का जवाब नहीं मिला तो भन्नाकर उन्होंने बिजली विभाग वालों की माँ बहन पर गुस्सा उतर दिया। पर क्रोधाग्नि में जल रहे लोगों को ये कौन समझाए कि बिजली विभाग के अफसर अपने स्टेशन पर मेहफ़ूज़ नहीं।
कल जब बारिश की बौछार पड़ी तो बिजली कार्यालय की दीवारों ने दग़ाबाज़ी करदी। कुछ छीटें पड़ने के बाद दीवारों पर पड़ी दरारों में से पानी आना शुरू हो गया। स्टेशन की ज़मीन पर पानी ही पानी फ़ैल गया। दफ्तर में पड़े तमाम दस्तावेज़ और कंप्यूटर भी बारिश के चलते भीग गए। अधिकारियों का कहना है कि वह समय से पहले कार्यालय पहुंच गए थे पर दफ्तर की जर्जर हालत के चलते उन्हें आपने काम पर विराम लगाना पड़ा।
अब इस पूरे मुद्दे में गलत क्या है और कौन है ये बताना मेरे लिए मुश्किल है। पर मेरे निज़ाम ने अपनी आवाम के लिए जो इंतज़ाम कर रखे हैं वो काबिल-ए-तारीफ हैं। जब मैं कीचड़ से लथपथ गाड़ियों को, गंदे पानी में अपना रिक्शा खींचते लोगों को देखता हूँ तब दुःख होता है। पर आत्मनिर्भरता का परिमाण देते यह लोग मुझको गर्व की अनुभूति करवाते हैं। टूटी सड़कें और जर्जर सरकारी दफ्तर ने मुझे सजा रखा है और इसके लिए मैं प्रशासन और मेरे आका का कृतज्ञ रहुंगा।
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