वैश्विक महामारी घोषित हो चुका कोरोना वायरस अभी तक 25 लाख से अधिक लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है और भारत में भी अभी तक 21 हजार कोरोना पॉजिटिव मामलों की पुष्टि हो चुकी है। वर्तमान में अभी तक इस महामारी के लिए कोई भी सफल इलाज नहीं ढूंढा गया है अर्थात इस वायरस की वैक्सीन अभी तक दुनिया भर के वैज्ञानिकों द्वारा नहीं खोजी गई है लेकिन दुनिया भर के कई वैज्ञानिक इस वैक्सीन की खोज में लगे हुए हैं ताकि इस महामारी से पार पाया जा सके और दुनिया पर बनी इस संकट की घड़ी को समाप्त किया जा सके।
दुनिया भर में कई वैज्ञानिकों कि भांति भारत में भी इस वायरस से निजात पाने के लिए वैज्ञानिक दिन रात वैक्सीन की खोज में लगे हुए है। 57 वर्षीय गगनदीप कांग जो ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं. यह संस्थान भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत आता है. गगनदीप कांग ऐसी पहली भारतीय महिला भी हैं, जिन्हें रॉयल सोसाइटी के फेलो के तौर पर चुना गया. सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि वो फिलहाल कोलिशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (CEPI) के बोर्ड में एक सदस्य के तौर पर कार्यरत हैं। इस वायरस की शोध पर कंग का कहना है कि वैक्सीन कि शोध एक लम्बी प्रक्रिया है जिसमें समय लगना अनिवार्य है फिलहाल भारत में कोरोना वायरस की वैक्सीन की खोज के चलते ज़ाइडस कैडिला दो टीकों पर काम कर रहा है, सीरम इंस्टीट्यूट, बायोलॉजिकल ई, भारत बायोटेक, इंडियन इम्युनोलॉजिकल और मायनवैक्स एक-एक वैक्सीन विकसित कर रहे हैं।
कंग ने उनके द्वारा हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि, “वैश्विक वैक्सीन आर एंड डी प्रयास COVID-19 महामारी के जवाब में पैमाने और गति के मामले में अभूतपूर्व है”। भारत में कोरोना पर शोध कर रहे अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा नहीं कि SARS-CoV-2 के लिए वैक्सीन कि खोज में 10 साल लगेंगे लेकिन इस वायरस की वैक्सीन बनाने में ओर उसे इंसानों पर प्रयोग के अंतिम चरण की टेस्टिंग में 1 सला का समय लगना लाजमी है।
इसके साथ ही को रोना पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का भी कहना यही है कि जबतक वैक्सीन पर शोध पूरी नहीं हो जाती बाचाव के शिवा इस महामारी से लड़ने का कोई अन्य उपाय नहीं है इसलिए सभी लोग सरकार द्वारा दिए दिशा निर्देशो का पालन करे।
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