फरीदाबाद कहने को तो स्मार्ट सिटी है, ललेकिन यहां पर काम स्मार्ट नहीं हो रहे हैं। जिले के शहरों में तो सीवर लाइन है, इसलिए सीवर का पानी ट्रीटमेंट प्लांट के जरिये नहरों तक पहुंच जाता है। लेकिन, ग्रामीण इलाके में सीवर के लिए गड्ढे खोदे हुए हैं और भरने के बाद टैंकर द्वारा इन्हें खाली कराया जाता है। सीवर के पानी से भरे यह टैंकर सीधे गुरुग्राम, आगरा सहित अन्य नहरों व ग्रीन बेल्ट में ही खाली किए जा रहे हैं।
सीवर नाम से ही लोगों को बदबू आने लगती है। ऐसे में प्रशासनिक स्तर पर कोई कार्रवाई न होने की वजह से ऐसे टैंकर चालक बाज नहीं आ रहे हैं। इस वजह से इसका सीधा असर किसानों के खेतों तक पहुंच रहा है क्योंकि इन सभी नहरों के पानी से ही सैकड़ों एकड़ फसलों की सिचाई होती है।
किसानों का मान करना सभी को चाहिए, लेकिन ऐसे कामों से किसानों की चिंता लगातार बढ़ रही है। जैसा हाल बड़े भाई फरीदाबाद का है वैसा ही ठीक छोटे भाई ग्रेटर फरीदाबाद का है। यहां भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। इसलिए विभिन्न सोसायटियों से निकलने वाला सीवर का पानी टैंकरों के माध्यम से सीधा नहर में डाला जा रहा है।
ग्रेटर फरीदाबाद में बड़ी – बड़ी इमारतें तो आपको ज़रूर दिख जाएंगी, लेकिन ऐसी ज़रूरत की चीज़े वहां आपको एक भी नहीं मिलेंगी। यहां इसके अलावा कुछ फैक्ट्रियों से भी केमिकलयुक्त पानी नहर में डाला जाता है। यही कारण है कि आगरा नहर का पानी काला रहता है।
सीवर का पानी यदि खेतों में जाता है तो उस से हमारी सेहत पर भी ख़राब असर पड़ता है। यहां पर गुरुग्राम नहर ही आगे जाकर सोहना से होते हुए नूंह और राजस्थान के अलवर को जाती है। इसी तरह से आगरा नहर फरीदाबाद से पलवल होते हुए आगरा तक जाती है।
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