श्राद्धपक्ष के 16 दिनों में अगर आपने नहीं किया श्राद्ध तो घबराइए नहीं, तो इस दिन कर लें दस बड़े काम :- अगर आप श्राद्ध और पितृपक्ष को नहीं जानते तो घबराएं नहीं, सिर्फ करें ये काम, क्योंकि जो हम आपको बताने जा रहे हैं, उन तमात काम के करने से आपके मन में कोई संकोच नहीं होगा, बल्कि आपकी समस्याएं हल ज़रूर हो जाएंगी।
आज के मॉडर्न दौर में ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है कि आज की जनरेशन श्राद्ध और पितृदोष जैसी चीज़ों को समझते हों। इसिलिए हम आपको ये तमाम जानकारियां देने जा रहे हैं।
आश्विन माह के पितृ अमावस्या को सर्वपितृ मोक्ष श्राद्ध अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है और इस दिन पितृपक्ष समाप्त हो जाता है। अगर आप पितृपक्ष में श्राद्ध करते हैं, तो सर्वपितृ अमवास्या के दिन पितरों को तर्पण करना जरूरी होता है, नहीं तो श्राद्ध कर्म अधूरा माना जाता है।
शास्त्रो में कहा गया है कि सभी जाने और अनजाने पितरों हेतु इस दिन जरूर श्राद्ध करना चाहिए। माना जाता है कि इस दिन सभी पितर आपके द्वार पर उपस्थित होते हैं। ऐसे में आपको सर्वपितृ अमावस्या के दिन क्या-क्या करना चाहिए, आज हम आपको विस्तार से बताने वाले हैं।
गरूड़ पुराण के प्रेत कल्प में नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, पार्वण, सपिंडन, गोष्ठ, शुद्धि, कर्मांग, दैविक, यात्रा और पुष्टि, शव का चिता की अग्नि में दाह संस्कार की विधि, अस्थि संचय की विधि, दशगात्र की विधि, मलिनषोडशी, मध्यमषोडशी श्राद्ध, उत्तमषोडशी श्राद्ध, नारायणबलि श्राद्ध, सपिण्डी श्राद्ध आदि सभी औधर्वदैहिक श्राद्ध पिण्डददान, तर्पण के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है।
तो आज हम इसी के अनुसार बताएंगे कि आखिर सर्वपितृ अमावस्या के दिन आपको क्या करना चाहिए। पितृ पक्ष में पिंडदान का काफी बड़ा महत्व है। मान्यता के अनुसार पिंडदान करने से पितर खुश होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
ऐसे में आप सर्वपितृ अमावस्या के दिन भी चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद मिलाकर पहले पिंड बना लें और फिर उन्हें पितरों को अर्पित करें। पिंडदान, तर्पण और बलि के बाद ब्राह्मण भोजन कराया जाना चाहिए। अगर ब्राह्मण नहीं हैं, तो अपने रिश्तेदार जो शाकाहारी हों उन्हें भोजन करा सकते हैं।
भोजन के बाद अपनी शक्ति अनुसार दक्षिणा जरूर दें। श्राद्ध समय में मांसाहार और व्यसन पूरी तरह से वर्जित माना जाता है क्योंकि पवित्र रहकर ही श्राद्ध पूरा करने का नियम है। इसके अलावा श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं, ऐसे में श्राद्ध पक्ष में कोई शुभ कार्य न करें।
बहरहाल सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध दोपहर साढ़े बारह बजे से एक बजे के बीच ही करें। दिव्य पितरों में काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम ये चार मुख्य गण प्रधान हैं। अर्यमा पितरों के प्रधान हैं और यमराज न्यायाधीश कहे गए हैं।
इसके अलावा अग्रिष्वात्त, बहिर्पद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख ये नौ दिव्य पितर बताए गए हैं। आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार भी केवल नांदीमुख पितरों को छोड़कर शेष सभी को तृप्त करते हैं।
सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल की पूजा- अर्चना करनी चाहिए, इससे पितर प्रसन्न होते हैं। पीपल की पूजा के लिए एक स्टील के लोटे में दूध, पानी, काला तिल, शहद और जौ मिला लें और उसे पीपल के पेड़ पर अर्पित कर दें।
यदि हो सके तो सभी पितरों का गया और उसके बाद ब्रह्मकपाली नामक स्थान पर विधिवत रूप से पितरों की मुक्ति और पितृदोष से मुक्ति हेतु श्राद्ध कर्म करें। मान्यता है कि प्रयागराज मुक्ति का पहला द्वार है, तो वहीं काशी दूसरा द्वार है और गया तीसरा और अंतिम में ब्रह्मकपाली आता है।
इन स्थानों पर क्रम से जाकर श्राद्ध करने से पितरों को निश्चित रूप से मुक्ति मिल जाती है। कहते हैं कि मानो तो सब-कुछ और ना मानों तो कुछ भी नहीं, वैसे कहावत तो सही है, क्योंकि अगर आप आस्था रखते हैं तो आपके मन में बहुत कुछ ख्याल आते रहते हैं क्योंकि आप खुद उन्हें अपनी भावनाओं में शामिल मानते है
लेकिन जब आप कुछ पितरों को लेकर कोई ज्ञान नहीं रखते हैं तो फिर आपके मन में वैसे ही कोई चीज़ नहीं आएगी और अगर आई भी तो आप उसे अपने मन की नहीं बल्कि प्रकृति की बात मानकर आगे बढ़ जाएंगे।
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