नमस्कार! मैं फरीदाबाद आज आप सबको कुछ याद दिलाने आया हूँ। आपको याद है कि शहर में कुछ दिनों पहले साइकिल ट्रैक का निर्माण करवाया गया था? नही याद तो कोई बात नही नीचे दी हुई तस्वीरे देख लीजिए।
यह उसी साइकिल ट्रैक की तस्वीरें हैं। इसको बनाने के बाद सरकार ने खूब हू हल्ला मचाया। अपनी तारीफ में अपने आप की क़सीदे पढ़े। अरे भाई अपनी तारीफ आप ही से करने की कला में तो निपुण हैं हमारे आका।
पर इसके अलावा एक और गुण है जिसमे मेरे निजाम का कोई मुकाबला नही कर सकता। वो गुण है जुमलेबाजी का। ये जो साइकिल ट्रैक सरकार ने बनवाया था ये उस जुमलेबाजी के गुण का जीता जागता उदाहरण है। आपने एक मुहावरा सुना होगा।
चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। यह मुहावरा शहर के साइकिल ट्रैक के मामले में सटीक बैठता है। जानते हैं क्यों? क्यों कि जो साईकिल ट्रैक बनाया गया था वो चंद दिन बाद ही विलुप्त हो गया।
न जाने कहाँ गया वो साइकिल ट्रैक। ज़मीन ने निगला या आसमान ने खाया इस बात का अंदाजा कोई भी नही लगा सकता। आप शायद नहीं जानते होंगे इस साईकिल ट्रैक के बारे में क्यों कि अब आपको बड़ी बड़ी गाड़ियों की जो आदत गई है।
पर मेरे प्रांगण में मौजूद सभी मजदूर भाइयों के लिए यह साइकिल ट्रैक रामबाण था। विशालकाय वाहनों से जब सड़कें भारी हुई होती हैं तब इन मजबूर मजदूरों की साइकिलों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
साइकिल ट्रैक पर वो बच्चे भी अपनी साइकिलों को दौड़ाते हैं जो इस देश का भविष्य है। पर अब न उन मजदूरों की मदद हो पाएगी न उन बच्चों की क्यों कि ट्रैक तो गायब हो चुका है। नेताओं को तस्वीरे खिंचवानी थी जो वो खिंचवा चुके हैं।
सरकार को काम गिनवाने के लिए एक और उपलब्धि मिल गई है। जुमले के गमले में एक और फूल सजा है। वो पुष्प है तुम्हारे शहर का साइकिल ट्रैक।
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