अयोध्या तो झांकी है मथुरा, काशी अभी बाकी है, सिद्ध होगा कथन !

अयोध्या तो झांकी है मथुरा, काशी अभी बाकी है, शायद ये कथन अब सिद्ध होगा, लग तो ऐसा ही रहा है। जिस तरह से सदियों से चले आ रहे राम मंदिर विवाद का रास्ता साफ हुआ और उसके बाद से ही लगातार और भी बातें निकलकर सामने आती रही हैं। इसी के तहत हमें ये भी सुनने को मिला था कि अयोध्या तो झांकी है मथुरा, काशी अभी बाकी है। अब लगता है कि ये कथन भी सिद्ध होगा।

देश की हवा जिस तरह से बह रही है, उस हवा की खूशबू से बहुत से लोग जो देश में ही मौजूद हैं वो डरे हुए हैं और बहुत से लोग बेहद खुश हैं, दरअसल ये लोग भी हैं देश में ही।

अयोध्या तो झांकी है मथुरा, काशी अभी बाकी है, सिद्ध होगा कथन !

वैसे देखा जाए तो अयोध्या की तरह मथुरा का मुद्दा भी है भावनात्मक, जिसकी लड़ाई भी शायद बहुत ही लंबी चलने वाली है। क्योंकि राम जन्मभूमि के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला भी कोर्ट पहुंच चुका है दरअसल अब मथुरा में स्थित शाही मस्जिद हटाने की मांग तेज़ हो चली है। बतादें कि वाद यानी मामला भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की सखा रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य लोगों ने दायर किया है।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर कोर्ट में सिविल सूट दायर किया गया है। ये केस सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन के साथ भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की सखा रंजना अग्निहोत्री ने दायर किया है। जिसमें ईदगाह मस्जिद को हटाने की अपील की गई है।

श्रीकृष्ण विराजमान व सात अन्य की ओर से सिविल जज सीनियर डिवीजन छाया शर्मा की कोर्ट में दायर दावे में यहां श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक देने और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की है।

इसके साथ ही मस्जिद समिति और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के बीच हुए समझौते को अवैध बताया गया है। जिला शासकीय अधिवक्ता, सिविल, मथुरा, संजय गौड़ ने कहा कि दावा दायर करने के बाद अदालत की ओर से प्रतिवादी को नोटिस जारी किया जाता है। इस पर प्रतिवादी अपना पक्ष रखता है। पक्ष सुनने के बाद अदालत दावा स्वीकार करने या खारिज करने की कार्यवाही करती है।

बतादें कि सन् 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन को लेकर समझौता हुआ था।

इसमें तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है, बनी रहेगी। जिस जमीन पर स्थित है, वह श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम पर है। ऐसे में सेवा संस्थान का किया गया समझौता गलत है। वर्ष 1618 में राजा वीर सिंह ने इस स्थान पर कटरा केशव देव मंदिर 33 लाख रुपये में बनवाया था।

वर्ष 1670 में औरंगजेब ने मंदिर को आंशिक क्षतिग्रस्त किया और मस्जिद का निर्माण किया। पांच अप्रैल, 1770 को गोवर्धन में मराठा और मुगल के बीच जंग हुई और मराठा जीत गए। मराठा ने दोबारा कटरा केशव देव मंदिर का जीर्णोद्धार किया और मस्जिद को हटा दिया। इसके बाद 1803 में अंग्रेजों ने अपने कब्जे में पूरा इलाका लिया।

अभी कुछ दिन पहले प्रयागराज में अखाड़ा परिषद की बैठक में साधु-संत मथुरा कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर चर्चा की थी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने मथुरा की ईदगाह मस्जिद तथा काशी की ज्ञानवापी मस्जिद को हटाने को अपने एजेंडा में शामिल किया है।

संतों ने काशी-मथुरा के लिए लामबंदी शुरू भी कर दी है। अखाड़ा परिषद ने प्रयागराज की अपनी बैठक में काशी और मथुरा के मंदिरों को मुक्त कराने का निर्णय लिया था। मथुरा में जिस भूमि पर ईदगाह मस्जिद है, उस भूमि को श्रीकृष्ण जन्मभूमि कहा जाता है।

अब देश में एक बार फिर से आस्था के नाम पर कुछ ऐसा होगा जिसकी उम्मीद शायद किसी ने ना की हो। चाहे जो हो लेकिन अयोध्या में बीते समय में जो कुछ हुआ वो नहीं होना चाहिए। देश में सभी की जगह है, लेकिन शांति बनी रहनी बहुत ज़रूरी है। देश में सभी हैं इंसान ही, लेकिन फिर भी ना जाने मानव ही मानव का दुश्मन क्यों बन जाता है।

जो लोग आस्था और धर्म के नाम पर लोगों को बरगलाते हैं, आपस में लड़ाते हैं उन लोगों को तो देश का दुश्मन ही कहा जाए तो भी कम होगा। ज़रूरी है ऐसे लोगों पर कार्रवाई हो। वैसे अब ये देखना होगा कि इस मामले पर कोर्ट क्या कार्यवाही करता है। लेकिन जो भी हो कोर्ट को यहां पर अपने विवेक का इस्तेमाल करना बेहद ज़रूरी है।

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