ऐसा आपने देखा होगा कि लोग बाथरूम और टॉयलेट साथ – साथ बनवा लेते हैं। ऐसा उनकी सुविधा के लिए होता है लेकिन घरों में बाथरूम और शौचालय एक साथ होने का प्रचलन सा हो गया है, लेकिन इनका एक साथ होना वास्तुदोष उत्पन्न करता है। इस दोष के कारण परिवार के सदस्यों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
सनातन धर्म में बहुत सी बातें हमें बताई जाती है लेकिन यह बात घर की खुशहाली, समृद्धि और वहां के निवासियों के स्वास्थ्य को प्रभावित होती है, साथ ही साथ बच्चों का करियर और पारिवारिक रिश्ते भी खराब हो सकते हैं।
नए घरों में आपको स्नानघर और टॉयलेट कमरों के अंदर ही दिखाई देते हैं। ऐसा होने पर, पति-पत्नी एवं परिवार के अन्य सदस्यों के बीच अक्सर मन-मुटाव एवं वाद-विवाद की स्थिति बनी रहती है। वास्तु शास्त्र के प्रमुख ग्रंथ विश्वकर्मा प्रकाश में बताया गया है कि ‘पूर्वम स्नान मंदिरम’ अर्थात भवन के पूर्व दिशा में स्न्नानगृह होना चाहिए।
नए घरों में आपको स्नानघर और टॉयलेट कमरों के अंदर ही दिखाई देते हैं। ऐसा होने पर, पति-पत्नी एवं परिवार के अन्य सदस्यों के बीच अक्सर मन-मुटाव एवं वाद-विवाद की स्थिति बनी रहती है। वास्तु शास्त्र के प्रमुख ग्रंथ विश्वकर्मा प्रकाश में बताया गया है कि ‘पूर्वम स्नान मंदिरम’ अर्थात भवन के पूर्व दिशा में स्न्नानगृह होना चाहिए।
हिन्दू धर्म में बहुत सी मान्यता हैं लेकिन सभी धर्म के लोग इस बात को ज़्यादातर मानते हैं। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि, शौचालय की दिशा के विषय में विश्वकर्मा कहते हैं ‘या नैऋत्य मध्ये पुरीष त्याग मंदिरम’ अर्थात दक्षिण और नैऋत्य दिशा के मध्य में मल त्याग का स्थान होना चाहिए। वास्तुशास्त्र के हिसाब से दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम दिशा को विसर्जन के लिए उत्तम माना गया है।अतः इस दिशा में टॉयलेट का निर्माण करना वास्तु की दृष्टि में उचित है।
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