ताजमहल से भी पुरानी प्रेम कहानी का है ये इतिहास! अक्सर हम ताजमहल का जिक्र करते है जो सात अजूबों में शुमार है। इसे प्रेम का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि शाहजहां ने इसे अपनी बेगम मुमताज महल के याद में बनाया था।
इसीलिए इसका नाम ताज है और उसे फिर बाद में ताजमहल कर दिया गया लेकिन इतिहास के पन्नो को अगर पलट कर देखा जाए तो ऐसी कई कहानियां है लेकिन वो अभी भी सबूतों के अभाव की वजह से दबी हुई है।

अभी तक वो लोगों के सामने उजागर नहीं हो पाई है लेकिन अब जो बात निकल कर सामने आ रही है उस बात को लेकर सरकार भी कोशिश कर रही है और जो कुछ भी हम आपको बता रहे है इस बात की जानकारी छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी वेबसाइट पर दी है। ज्यादा समझने और जानने के लिए आपको उस पर जाकर पता कर सकते है।
तो आपको बता दे एक ऐसी वीलक्षण कहानी निकल कर सामने आई है जो इतिहास के पन्नो में कही दबी हुई है, कही घुल फांक रही है। वो अभी दुनिया के सामने नहीं आ पाई है लेकिन उसे बहुत जल्दी दुनिया के सामने लाया जाएगा ऐसी कोशिश की जा रही हैं।

जिस तरह से शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था और इसे प्रेम कहानी के प्रतीक के रूप में माना जाता है ठीक उसी तरीके से इससे भी पुरानी प्रेम कहानी लेकिन ये कहानी इसके थोड़ी विपरीत है।
यहां पुरुष ने अपनी प्रेमिका के लिए ताजमहल बनवाया लेकिन जिस कहानी का जिक्र हम कर रहे वहां प्रेमिका ने अपने प्रेमी की याद में कुछ बनवाया। जिसे आज के समय में लक्ष्मण मंदिर के नाम से जाना जाता है। जानकारी के मुताबिक पति प्रेम की इस निशानी को 635-640 ईसवीं में राजा हर्षगुप्त की निशानी में रानी वासटादेवी ने इसे बनवाया था।

बताया जाता है कि लगभग ग्यारह सौ वर्ष पहले शैव नगरी श्रीपुर में मिट्टी के ईंटों से बने स्मारक में यह कहानी आज भी भारत के इतिहास में जगह पाने के लिए जूझ रही है लेकिन चौकाने वाली बात ये है कि जो लक्ष्मण मंदिर है वो मिट्टी की ईंटो से बना है लेकिन आज तक वो ऐसे के ऐसे ही शान के साथ खड़ा हुआ है।
हम अक्सर देखते है कि इमारते बनती है टूट जाती है, कमजोर पड़ जाती है लेकिन ये मिट्टी की ईंटो का बना हुआ मंदिर आज तक इसे कोई नुकसान नहीं हुआ है।

बता दे हाल ही में छत्तीसगढ़ के अंदर हुए एक सम्मेलन में इस बात के सबूत दिए गए कि राज्य में हुई खुदाई के अंदर इस बात की सिद्ध करने के लिए सबूतों को रखा गया है। वहीं इस बात की जानकारी छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी वेबसाइट पर दी हुई है।

पवित्र महानदी के तट पर बसा सिरपुरा छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत की अनमोल धरा है। प्राचीन काल में यह सिरपुरा के नाम से जाना जाता था। सिरपुर में जब पुरातत्व विभाग ने खुदाई प्रारंभ की, तो पुरा संपदा का एक अद्भुत खजाना सामने आ गया।