महामारी के कारण हर व्यक्ति का जीवन तितर-बितर हो गया है। संक्रमण के बढ़ते कदम को रोकने के लिए लगाए गए लॉक डाउन को भी अब 6 महीने से ज्यादा बीत चुका है। वहीं अनलॉक प्रक्रिया के दौरान लगभग हर क्षेत्र को आजादी दे दी गई है।
आजादी का अर्थ है कि हर क्षेत्र में अब कार्य को प्रगति पर लाने के लिए धीरे-धीरे सभी प्रयास किए जा रहे हैं परंतु सुरक्षा के साथ। वही अभी भी कुछ ऐसे लोग हैं जो इस अनलॉक प्रक्रिया के बावजूद निराश हैं।

इन्हीं में एक नाम फरीदाबाद के एनआईटी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मध्यमवर्ग परिवार का है। यह वह परिवार है जो लभभग पिछले 60 वर्षों से दशहरा मैदान में बिकने वाले पुतलों में अपनी कला के माध्यम से रावण का रूप देकर आकर्षक ढंग से तैयार करते हैं।
परंतु इस बार इन्हें कोरोना की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। इसका कारण यह है कि महामारी के बढ़ते संक्रमण के बीच इस साल दशहरा मैदान में रावण के पुतले नहीं जलाए जा रहे हैं।

ऐसे में दशहरा मैदान में आने वाले लोग जो अपने बच्चों के लिए रावण के पुतले खरीदते थे, उनके भी आवागमन पर अंकुश लगाया जाएगा। ऐसे में इस परिवार ने त्योहार में भी आर्थिक तंगी दूर होने की आस छोड़ दी है।
वहीं पुतले बनाने वाले नवाब का कहना है कि इस बार संकट काल के चलते उनके कारोबार पर भी बेहद असर पड़ा है। उन्होने बताया कि पूतले बनाने के अलावा वह और उनका पूरा परिवार शादीयो में भी आतिशबाजी का भी काम करते है,
लेकिन लॉक डाउन के चलते आतिशबाजी का कार्य समाप्त हो गया। ऐसे में उनके सामने भयंकर आर्थिक मंदी की समस्या उत्पन्न हो गई हैं।
उन्होंने कहा जहां हर वर्ष वह हर्षोल्लास के साथ रावण के पुतले बनाते थे और लोग भी खुशी खुशी उनसे पुतले खरीदना पसंद करते थे। परंतु इस बार तो मानो पुतले खरीदने वालों के लाले ही पड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि वह पिछले साल 30 से 35 छोटे से बड़े रावण के पुतले बनाकर बेच चुके थे,

लेकिन इस बार 15 से 20 पुतले बनाने के बावजूद उन्हें कोई खरीदने वाला दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा। उन्होंने कहा कि वह इसके बावजूद अपनी पूरी मेहनत और लगन से रावण के पुतले तैयार कर रहे हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद जागृत होती हुई दिखाई नहीं दे रही कि उनके द्वारा बनाए गए पुतले देखने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग उपलब्ध होंगे।