नमस्कार! मैं फरीदाबाद एक ऐसा शहर जो अब लड़कियों के लिए अभिशाप बन चुका है। मैं जानता हूँ कि आप में से कई लोगों के मन में यह बात जरूर आई होगी कि फरीदाबाद नहीं बल्कि लड़की होना ही अपने आप में अभिशाप बन चुका है।
पर आपकी इस सोच का जिम्मेदार यह समाज है जो मनचले आशिकों को पनाह दे रहा है। दो दिन पहले मेरे प्रांगण में एक लड़की को दिन दहाड़े गोली मार दी जाती है। एक लड़की जो चुपचाप अपने एग्जाम देने अपने कॉलेज जा रही थी उस से एक गहन रंजिश का बदला लिया जाता है।

एक सरफिरा मनचला आशिक जो लड़की के प्यार में डूबे होने का दावा करता है पर फिर उसी लड़की को गोली मार देता है। यह कैसा प्यार हुआ ? मेरे प्रांगण में जन्मी इस बिटिया की मौत ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कहीं मैं लड़कियों के लिए भक्षक तो नहीं बनता जा रहा।
“निकिता” इस देश की लाड़ली अपने माँ बाबा की जान अपने पीछे सपनो की फेहरिस्त छोड़कर गई है। उसका सपना था कि अफसर बनेगी, बाबा का नाम ऊँचा करेगी पर अब उस सपने का न कोई वर्तमान है न उसका कोई भविष्य होगा।

इस सबके पीछे एक ही नाम है तौसीफ, जिसने एक लड़की के सपनों को तार तार कर दिया। एक मां से उसकी बेटी छीन ली और एक पिता से उसका गुरूर छीन लिया। निकिता की बुआ रोते बिखलते कहती है कि हमारी बिटिया के सपनों का क्या होगा? और आप हमारी बदनसीबी देखिये कि जवाब देने के लिए हमारे पार एक शब्द नहीं है।

जब उस बेटी की अर्थी मेरी जमीन को छू रही थी तो लगा कलेजा फैट जाएगा, खुदको बोझिल महसूस किया। पर मैं क्या करूँ मैं तो डूब कर मर भी नहीं सकता क्यों कि आप सभी की सुरक्षा का भार मेरे ही कन्धों पर है।

पर मैं जानना चाहता हूँ कि क्या सही मायनों में निकिता को इन्साफ मिल पाएगा? क्या तौसीफ को फांसी होगी? क्या निकिता की माँ का दुःख कम होगा? अरे ज़रा सोचो उस भाई के बारे में जो अब कभी भी अपनी बहन से अपनी कलाई पर राखी नहीं बंधवा पाएगा।

मन करता है जी भर के रोऊँ और अपने आसूं बहाऊँ, उस परिवार को आश्वस्त करूँ कि अब उन्हें और दुःख नहीं झेलना होगा। पर यह मुमकिन नहीं। क्यों कि जैसे ही उनकी बिटिया के सपने उनकी आँखों के आगे आएँगे तो उनके मन में जो प्रलय मचेगा इसका अंदाजा आप और हम नहीं लगा सकते।