महामारी के दौर में त्योहारों के रंग फीके पड़े नज़र आ रहे हैं। हर साल की तरह पूरा देश करवाचौथ का पर्व मनाने के लिए सुसज्जित है। पर इस साल महामारी के चलते त्योहारों में बदलाव आ चुका है। जहां करवाचौथ पर हर साल बाज़ारों में धूम मची होती थी आज पूरी मार्किट सूनी पड़ी हुई है।
वैश्विक आपदा की मार त्योहारों से जुड़े व्यवसायकर्ताओं को झेलनी पड़ रही है। महेंदी वालों से लेकर चूड़ी वालों तक हर किसी के रोज़गार में नुक्सान झेलना पड़ रहा है। जहां हर साल साड़ी सूट वालों की दुकान पर लम्बी लाइन लगी रहती थी वहीं आज यह कतार ख़त्म हो चुकी है।

व्यवसाय कर्ताओं का कहना है कि लॉकडाउन के बाद से ही उनके काम में निरंतर गिरावट आई है। उन्हें उम्मीद थी कि त्योहारों के समय पर उनका व्यवसाय अच्छे से चल सकेगा। पर इन सभी आकांक्षाओं पर पानी फिर गया जब इस बार कोई भी अभिभावक सामन खरीदने बाजार नहीं आ पाया।

बात की जाए इस त्यौहार से जुड़े छोटे व्यवसाय कर्ताओं की तो उनका काम और मुनाफा दोनों गर्त में जा चुका है। जहां हर बार ठेले पर करवा लगाने वालों की बिक्री मुश्किल से हो पाती थी वहीं इस बार तो उनका व्यवसाय बिलकुल ही ख़त्म हो चुका है।

न कोई मिट्टी के बर्तन खरीदने को राज़ी है न कोई मेहंदी लगवाना चाहता है। बिमारी से बचने के लिए हर कोई सावधानी बरत रहा है। पर किसी के ज़हन में यह बात नहीं आई कि अगर त्योहारों पर भी सामान नहीं खरीदा जाएगा तो छोटे व्यवसाय धारक कहाँ जाएंगे। बीते दिनों विजयदशमी के पर्व में भी उम्मीद की जा रही थी काम तूल पकड़ेगा।

पर उस समय पर भी काम नहीं चल पाया। त्योहारों के दौरान बहुत सारे हस्तशिल्पी ऐसे हैं जिनके हाथ से बने उपकरण बेच कर वह अपना जीवन निर्वाह करते हैं। पर इस साल यह सभी व्यवसायकर्ता अपने काम के डूब जाने से काफी ग़मगीन हो चुके हैं।

मिठाई की दुकानों पर भी इस बार ज्यादा चहल पहल नजर नहीं आ रही है। लोग बहार से सामान खरीदने से बच रहे हैं। व्यवसाय धारकों को डर है कि इस बार उनका काम बंद हो जाएगा और उनके भविष्य पर उन्हें अब संदेह के बादल नज़र आ रहे हैं।