देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा प्रदेश की जितनी अहमियत राजनीतिक दृष्टि से है उससे भी कहीं अधिक आर्थिक दृष्टि से मानी जाती है। दिल्ली के एक तरफ औद्योगिक शहर फरीदाबाद है तो दूसरी तरफ साइबर सिटी गुरुग्राम जहां अधिकतर बड़ी विदेशी कंपनियों के दफ्तर हैं। थोड़ा आगे बढ़ें तो कुंडली, सोनीपत, बहादुरगढ़, रोहतक, झज्जर और बावल में औद्योगिक इकाइयां प्रदेश का राजस्व बढ़ाने में अहम योगदान दे रही हैं। पानीपत के हेंडलूम उद्योग की पूरी दुनिया में पहचान है तो करनाल और कुरुक्षेत्र का बासमती चावल विदेशों को निर्यात होता है। अंबाला में बनने वाले विज्ञान उपकरणों की पूरी दुनिया में मांग है। प्रदेश में छोटी-बड़ी हजारों इंडस्ट्री ऐसी हैं, जो कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन का शिकार हो गई हैं। अब डेढ़ माह के लंबे अंतराल के बाद इंडस्ट्री का लॉक खोलने की तैयारी हुई तो उत्पादन के लिए कच्चे माल और श्रमिकों की सबसे बड़ी समस्या सामने आ रही है।
श्रमिकों की कमियों से तरसे प्रदेश के उद्योग
रविवार को वेबिनार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सामने देश-प्रदेश के प्रमुख उद्यमियों ने श्रमिकों की कमी की समस्या उठाई। इस वेबिनार में मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव, लिबर्टी समूह के एमडी शम्मी बंसल, चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया, लखानी अरमान ग्रुप के चेयरमैन केसी लखानी, एस्कॉर्ट्स ग्रुप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शैनू अग्रवाल और हिसार मेटल इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक कर्ण तायल सरीखे बड़े-बड़े उद्यमी शामिल हुए। सभी उद्यमियों की एक ही समस्या थी, आखिर उत्पादन कैसे शुरू किया जाए? श्रमिकों की कमी इसलिए आड़े आ रही है, क्योंकि अधिकतर अपने मूल प्रदेश लौटना चाह रहे हैं। मुख्यमंत्री ने इन श्रमिकों को रोके रखने के लिए उद्यमियों से प्रयास करने को तो कहा ही, साथ ही सरकार से जो बन सकता है, वह करने का भरोसा भी दिलाया है।
अनाज मंडियों में पड़ रही मजदूरों की कमी
हरियाणा में आजकल गेहूं खरीद का सीजन चल रहा है। पहले गेहूं काटने के लिए मजदूर नहीं थे। मनरेगा के मजदूरों से गेहूं कटवाई गई। राहत शिविरों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों ने भी आगे बढ़कर सहयोग किया। अब मंडियों से गेहूं के उठान के लिए श्रमिक नहीं मिल रहे हैं। यही स्थिति इंडस्ट्री के सामने बन रही है। मुख्यमंत्री ने श्रमिकों को रोके रखने के लिए उद्यमियों से डबल शिफ्ट में काम लेने तक की छूट भी दे दी है, लेकिन कुछ उद्यमियों ने प्रस्ताव रखा कि ऐसा करने पर उन्हें डबल वेतन देना पड़ेगा जो फिलहाल उनके बूते की बात नहीं है। प्रस्ताव आया कि इन श्रमिकों का वेतन प्रदेश सरकार अपने खजाने से दे। प्रदेश में करीब 22 लाख श्रमिक काम करते हैं। यदि सरकार ने इन्हें अपने खजाने से वेतन देना शुरू कर दिया तो तीन साल का सरकार का पूरा बजट ही इस मद में खत्म हो जाएगा। लिहाजा यह प्रस्ताव अव्यावहारिक लगा।
फिलहाल मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने उद्यमियों को सुझाव दिया कि सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही है, लेकिन उद्यमियों को अपने स्तर पर श्रमिकों को रोके रखने का प्रयास करना होगा। इसके लिए उन्हें श्रमिकों को पारिवारिक माहौल प्रदान करने का आश्वासन देना होगा। सरकार की कोशिश केंद्र से आर्थिक पैकेज लेने की भी है, ताकि इंडस्ट्री की उखड़ती सांसों को नए सिरे से ऑक्सीजन प्रदान किया जा सके।
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