कहते है कि इतिहास वर्तमान का अतीत के साथ निरन्तर संवाद है लेकिन क्या आपने कभी इसको आंखों से देखा है। जी हां आज हम आपको ऐसे ही जनजातियों के बारे में बताने जा रहे है जो आज भी आपको पुराने इतिहास और वर्तमान का एक साथ एहसास दिलाएँगी। जी हां, हम आपको बताएंगे मुर्सी जनजाति के बारे में। ये उन जनजातियों में से है जो खतरनाक भी है।
इनमें से कुछ बेहद खतरनाक होती हैं। इन्हीं में से एक है इथियोपिया की खूंखार मुर्सी जनजाति। इसके लोगों के लिए किसी की हत्या करना मर्दानगी की निशानी होती है। पेशे से जियोफिजिसिस्ट रत्नेश पांडे ने वहां गुजारे वक्त के दौरान मिले अनुभव और जानकारी नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से साझा की हैं और उन्होंने सुनाई है कहानी दक्षिण इथियोपिया और सूडान बॉर्डर की ओमान घाटी में रहने वाली मुर्सी जनजाति की।
रत्नेश पिछले 11 साल से तंजानिया में कार्यरत हैं और वह दुनियाभर के 35 देशों के अनुभव ले चुके हैं।
कौन हैं मुर्सी?
मुर्सी समुदाय की कुल आबादी करीब 10 हजार है। दुनिया में मुर्सी जनजाति के लोगों को सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है क्योंकि ‘मुर्सी’ का सिर्फ यही मानना कि ‘किसी दूसरे को मारे बगैर जिंदा रहने का कोई मतलब नहीं है और इससे अच्छा तो खुद मर जाना है।’ मुर्सी जनजाति के लोगों ने सैकड़ों लोगों की जान ली है, जो इनकी इजाजत के बगैर इनके क्षेत्र और समुदाय की तरफ चले आते हैं।
इस जनजाति की इस हिंसक प्रवृत्ति को देखते हुए इथियोपिया की सरकार ने इनसे संपर्क करने पर प्रतिबंध लगा रखा है। जब कभी कोई विदेशी या राष्ट्रप्रमुख सरकारी मेहमान के तौर पर इथियोपिया में आकर मुर्सी जनजाति को देखने की इच्छा प्रकट करता है, तो इथियोपिया की सरकार उसे इथियोपिया आर्म्ड गार्ड के सुरक्षा घेरे में लेकर जनजातीय क्षेत्र का दौरा कराया जाता है ताकि उन पर हमला न कर दिया जाए।
यूं तो आदिवासी जनजातियों में गायों की काफी अहमियत होती है लेकिन मुर्सी जनजाति के लोगों में अजीब ही रिवाज होते हैं। मुर्सी जनजाति के लोग AK-47 के पुराने मॉडल को 8 से 10 गाय के बदले खरीदते हैं, जबकि इसका नया मॉडल 30-40 गाय देकर खरीदते हैं। इन हथियारों की सप्लाई इन्हें पड़ोसी देश सूडान और सोमालिया से की जाती है। मुर्शी जनजाति के पुरुष और महिलाएं हमेशा अपने साथ क्लाश्निकोव राइफल (AK-47 or AK-56) और राइफल की गोलियों की बेल्ट लिए रहते हैं और थोड़ा सा भी खतरा महसूस करने पर राइफल से गोलियों की बौछार कर देते है।
ये सामने वाले की हत्या करने के बाद जश्न मनाते हैं और इसमें पूरा मुर्शी समुदाय शामिल होता है। यहां तक कि जिस मुर्शी के हाथों गैर-मुर्सी जनजाति की हत्या हुई होती है, उसे मुर्शी समुदाय का असली मर्द कहकर उसकी हौसला-अफजाई की जाती है। इस समाज में किसी गैर-मुर्सी की हत्या करना जश्न मनाने के समान होता है।
इस जनजाति के लोग महिलाओं को बुरी नजर से बचाने के लिए बॉडी मॉडिफिकेशन प्रक्रिया को अपनाते हैं। इसके तहत 15 साल की आयु की हो जाने के बाद लड़कियों की मां कबीले की दूसरी महिलाओं के साथ मिलकर अपनी लड़कियों के निचले होंठ में लकड़ी या मिट्टी की डिस्क पहना देते हैं। फिर कुछ महीनों बाद में 12 सेंटीमीटर व्यास की डिस्क फंसा दी जाती है, जो कि पूरी जिंदगी उसके होंठ में लगी रहती है। ये प्रथा इस लिए अस्तित्व में आई क्योंकि पुराने समय पुरुषों को गुलाम बनाकर उनसे मजदूरी करवाई जाती थी और वहीं औरतों को यौन गुलाम बनाकर उन पर जुल्म किए जाते थे। लोगों की गंदी नजरों से बचने के लिए ये महिलाएं खुद को बदसूरत बना लेती थीं। इसके लिए इनके मुंह के दांत भी टूट जाते थे। प्लेट के कारण इनके होंठ काफी लटक जाते थेजिससे उनकी खूबसूरती कम हो जाती थी। मुर्सी जनजाति गुलामी से बचने के लिए शुरू किए गए इन तरीकों को अपनी परंपरा बना चुकी हैं। विवाह के बाद ये महिलाएं अपने गले में पट्टा बांध लेती हैं।
मुर्सी जनजाति लगभग 2 हजार वर्ग किलोमीटर के कुल क्षेत्रफल में अपने समुदाय के साथ रहती है और कड़ाई से अपनी सीमाओं की रखवाली करती है। ये बाहरी लोगों को अपनी सीमाओं में आने से निर्मम तरीके से रोकती है, सुनसान सड़क पर भाले या कलाश्निकोव के साथ मुर्सी पुरुषों और महिलाओं को देखा जा सकता है। मुर्सी जनजाति को इस क्षेत्र की सबसे धनी जनजातियों में से एक माना जाता है।
यहां जिसके पास जितनी गायें होती हैं, उसी के आधार पर उनके धनी होने का पैमाना तय होता है। मुर्सी जनजाति में प्रत्येक महत्वपूर्ण सामाजिक अनुष्ठान मवेशियों की मदद से संपन्न होता है। लड़की से शादी करने के लिए, दूल्हे का परिवार दहेज के तौर पर दुल्हन के पिता को भुगतान करता है- आमतौर पर 20-40 गायों और एक कलाश्निकोव की राइफल को लड़की के पिता को उपहार स्वरूप गिफ्ट किया जाता है।
यह परंपरा सभी ओमो जनजातियों की विशेषता है। यही कारण है कि जन्मजात लड़कियों को यहां परिवार की भलाई की एक अच्छी गारंटी माना जाता है। मुर्सी जनजाति के युवा, लड़की पाने के लिए खूनी खेल का आयोजन करते हैं जिसमें युवा जितने हिंसक तरीके से अपने सामने वाले युवा प्रतिद्वंदी पर विजय प्राप्त करता है, उसे उतना ही श्रेष्ठ और बहादुर मुर्सी घोषित किया जाता है और उसके साथ ही लड़की की शादी की जाती है
मुर्सी जनजाति में, महिलाएं कड़ी मेहनत करती हैं- वे घर बनाने, बच्चों की देखभाल करने, भोजन तैयार करने और पास के स्रोत या नदी के तल से पानी पहुंचाने के लिए जिम्मेदार होती हैं। मुर्सी पुरुष गायों को चराने और गांव की रखवाली करते हैं। आदिवासी संघर्षों के मामले में गांव की सुरक्षा भी पुरुषों के पास है।
इसी समय, कम उम्र की लड़कियां अपने जीवन को व्यवस्थित करने में माताओं की मदद करती हैं, और लड़के हथियारों का उपयोग करना सीखते हैं। मुर्सी का मुख्य भोजन सूखा दलिया है जिसे कद्दूकस मक्का या शर्बत से बनाया जाता है। कभी-कभी, पशु के दूध और रक्त को इसमें जोड़ा जाता है, गाय के गर्दन पर घाव से सीधे ताजा लिया जाता है (जानवर एक ही समय में नहीं मारता है), या पहले से ही एकत्र और कैलाब में संग्रहीत किया जाता है। तो आपने इस जनजाति के बारे में जो एक तरह से पुरानी और नयी परम्परा पर आधारित है और आज भी इतिहास को समझने के लिए किसी पुल से कम नहीं है।
ऐशलॉन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, फरीदाबाद में आयोजित वार्षिक तकनीकी-सांस्कृतिक-खेल उत्सव, एचिस्टा 2K24 का दूसरा दिन…
एचिस्टा 2K24 का भव्य समापन ऐशलॉन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में हुआ, जो तीन दिनों की…
फरीदाबाद के ऐशलॉन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में तीन दिवसीय "ECHIESTA 2K24" का आज उद्घाटन हुआ।…
बल्लबगढ़ स्थित सेक्टर-66 आईएमटी फरीदाबाद में लगभग 80 एकड़ में होने वाली पांच दिवसीय शिव…
विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास हेतु दृढ़ संकल्प को मन,वचन व कर्म से निभाते हुए विभिन्न…
भारतीय जनता पार्टी के फरीदाबाद विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी एवं पूर्व मंत्री विपुल गोयल ने…