मनोहर लाल खट्टर हरियाणा की सियासत का वो चेहरा हैं जिनके नाम पर भारतीय जनता पार्टी ने 2019 विधानसभा चुनाव में अपना परचम ऊंचा किया। खट्टर की सियासी पारी में विधानसभा चुनाव की जीत सिर्फ जीत नहीं थी ये हरियाणा के लिए एक नई कहानी का आगाज था। इस कहानी की शुरुआत में भी खट्टर हैं और आखिर में भी खट्टर हैं। मनोहर लाल की सियासी कहानी बहुत फिल्मी है। वह पहली बार चुनाव लड़ने पर ही सीएम बन गए।
कहते हैं कि सियासत के वही कायदे होते हैं जो लोकतंत्र को अच्छा रास्ता दिखाएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी, अपने दोस्तों के लिए हेड मास्टर, हरियाणा जैसे राज्य के मुख्यमंत्री, राज्य में भाजपा के सबसे मजबूत स्तम्भ, संघ के सबसे मजबूत सिपाही, सादा जीवन साफ़ छवी और नाम मनोहर लाल खट्टर।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल को अपने नाम में खट्टर लगाना पसंद नहीं है, खुद इस बात का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा भी है कि उन्हें अपने नाम के आगे खट्टर लगाना अच्छा नहीं लगता। साल 1954 में 5 मई को रोहतक के निंदाना गाँव में खट्टर का जन्म हुआ। उनका पूरा परिवार शुरू से ही खेती किसानी करता था। किसान परिवार से आने वाले खट्टर पंजाबी परिवार से ताल्लुक रखते हैं।
भारत विभाजन के बाद खट्टर का परिवार निंदाना गाँव में आकर बस गया। निंदाना में उनके पिता और दादा की दूकान थी जबकि बनियानी गाँव में उनके परिवार ने खेती के लिए जमीन खरीदी थी। पढ़ाई लिखाई में मनोहर लाल हमेशा से ही अव्वल आते थे। खट्टर अपने पूरे परिवार में 10 वीं पास करने वाले पहले सदस्य हैं।
वह हमेशा से ही डॉक्टर बनना चाहते थे इसी शौक को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी शिक्षा ग्रहण करना शुरू किया। प्राइमरी स्कूल की शिक्षा उन्होंने अपने गाँव में की जबकि पड़ोस के गाँव माली आनंदपुर से उन्होंने मैट्रिक पास की। लेकिन ढेर सारी परिस्थितयों में घिरे होने के कारण खट्टर ने 10 वी पास करने के बाद सदर बाजार में कपड़ों की दुकान में काम करना शुरू करदिया।
लेकिन कहते हैं कि हुनर साथ हो और लक्ष्य साफ़ हो तो बाधाएं अपने आप किनारा पकड़ लेती हैं। दुकानदारी के साथ साथ मनोहर लाल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से सनातक की डिग्री की और आगे बड़े। बचपन से ही गंभीर रहने वाले खट्टर को उनके व्यक्तित्व के कारण उनके सभी दोस्त उन्हें हेड मास्टर बुलाया करते थे। साल 1974 में पिता की आज्ञा का पालन करते हुए मनोहर लाल अपने भाइयों के साथ दिल्ली आ गए।
दिल्ली आने के बाद उन्होंने मेडिकल की तैयारी छोड़ दी और बिज़नेस में हाथ बताने लगे। दिल्ली लौटने के दो साल बाद सन 1976 में खट्टर राष्ट्रिय सेवक संघ से जुड़े। उस वक्त देश के हालात अच्छे नहीं थे, इमरजेंसी का दौर था और पूरा देश हैरान परेशान था। इस बीच किसे पता था कि एक दिन संघ के रस्ते खट्टर एक दिन मुख्यमंत्री के सिंघासन पर बिराजेंगे। 1977 में देश से इमरजेंसी ख़त्म हुई, तब तक खट्टर संघ में अपनी ठीक ठाक पैठ बना चुके थे।
तीन साल बाद 1980 में वह संघ से जीवन भर के लिए जुड़ गए। वहीँ दूसरी ओर उनके परिजन उनपर विवाह करने का दबाव बनाने लगे। उनके परिवार के सदस्य चाहते थे कि खट्टर आरएसएस से हमेशा के लिए अलग हो जाएं और अपना घर बसा लें। परन्तु मनोहर लाल विवाह ना करने के फैसले पर अडिग रहे और शादी नहीं की। संघ प्रचारक के तौर पर खट्टर ने अच्छा काम किया।
कहा जाता है कि उस दौर में पीएम मोदी और खट्टर एक ही कमरे में रहा करते थे। दोनों को करीब से जानने वाले बताते हैं कि उसी वक्त बनी आपसी समझदारी और नजदीकी के चलते मोदी के कहने पर खट्टर ने चुनाव लड़ा और सीएम की कुड़सी भी उन्हें मिल गई। संघ से जुड़े मनोहर लाल 90 के दशक में आते आते सियासत की राहों पर चलने लगे थे। 90 के दशक में वो मौका भी आया जब वो भाजपा के साथ आए।
1994 में उन्हें हरियाणा बीजेपी में प्रदेश संगठन मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। मनोहर लाल अपने राजनैतिक कौशल के लिए हमेशा से मशहूर रहे हैं और अपनी पार्टी के लिए कई चुनाव अभियानों की रणनीति तैयार कर चुके हैं। वर्ष 2002 में भाजपा ने मनोहर लाल को जम्मू कश्मीर का प्रभारी बना दिया। लोकसभा चुनाव में खट्टर को हरियाणा चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
2004 में उनके जिम्मे 12 राज्यों का भार आ चुका था। लम्बे राजनैतिक संघर्ष और पार्टी के लिए लगातार कर रहे काम ने खट्टर को बड़ा मौका दिया। साल 2014 में हरियाणा विधान सभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें करनाल विधानसभा से लड़ने का टिकट दिया। चुनाव में बीजेपी को जबरदस्त जीत मिली। खट्टर भी चुनाव जीत चुके थे जिसके बाद पार्टी में हुए हलके विरोध के बाद उन्हें सीएम पद के लिए चुना गया।
26 अक्टूबर 2014 को उन्होंने हरियाणा के 10 वे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। खट्टर कई दफा विवादों में भी रहे हैं। हालांकि हर बार विवाद बढ़ने पर वह अपने बयान वापस खीचते रहे हैं। कई बार उनकी कैबिनेट में भी विवादों की खबरें सामने आई हैं लेकिन तमाम बातों के बाद भी वह स्थिति को संभालने में कामियाब रहे और अपनी सूझ बूझ से हर परेशानी का निवारण करते आए हैं।
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