जहां एक तरफ दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का स्तर और स्थिति भयावह होती हुई दिखाई दे रही है। वहीं कहीं ना कहीं इस प्रदूषण को फैलाने में सर्वश्रेष्ठ भूमिका पराली निभाता हुआ दिखाई दे रहा है। प्रदूषण के लिए लगभग 35 से 45 फ़ीसदी तक जिम्मेदारी पराली ने अपने सर ले रखी है।
वही बढ़ते हुए प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए विशेषज्ञों का कहना है कि यद्यपि एथेनॉल की तरह पराली का भी ईंधन बनाने में इस्तेमाल किया जाए तो एक साल में ही 25 फीसदी समस्या दूर हो सकती है। अगले 3-4 साल में पराली से प्रदूषण की समस्या पूरी तरह खत्म की जा सकती है।
जानकारी के लिए बता दें कि पंजाब, हरियाणा और यूपी को मिलाकर करीब तीन करोड़ से ज्यादा यहां से पराली एकत्रित की जाती है। वही जब इस पराली का प्रयोग शुगर मिल में बिजली बनाने के काम में भी किया जा सकता है।
वही खुशी की बात तो यह है कि हरियाणा के अंतर्गत आने वाले अंबाला जिले में ही एक ऐसा अनूठा प्रयोग किया गया था जो कारगर साबित हो रहा है। दरअसल, मिल में किसानों से खरीदी गई पराली को बेलर के जरिये पहले ईंधन के तौर पर इस्तेमाल योग्य बनाया गया।
यह प्रयोग कारगर रहा है। पराली से भविष्य में कंप्रेस्ड बायोगैस भी तैयार की जा सकती है। इससे किसी तरह का प्रदूषण नहीं फैलता और न ही कचरा पैदा होता है।
वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका-यूरोप में तो पराली जैसी कोई परेशानी नहीं है, लेकिन दक्षिण एशिया के लिए यह बड़ा संकट है। वर्व रीन्यूवेबल्स के सह संस्थापक और सीईओ सुव्रत खन्ना का कहना है कि यूपी, पंजाब और हरियाणा की सभी निजी मिलों में इसकी शुरुआत हो जाए तो करीब 30 लाख टन यानी 10 फीसदी पराली का इस्तेमाल हो सकता है।
हरियाणा में ऐसी 4, पंजाब में 6 से 8 और यूपी में भी 6-8 ऐसी शुगर मिल हैं, जहां इस पराली का इस्तेमाल करने योग्य तकनीक है।उन्हें ब्वायलर में छोटे-मोटे बदलाव ही करने पड़ सकते हैं. सरकारी मिलें भी यही नीति अपना लें तो एक साल में 25 फीसदी समस्या पर काबू पाया जा सकता है। वर्व रीन्यूबेल ने खुद इस साल 1.5 लाख टन पराली बेलर से खरीदने का लक्ष्य रखा है।
हरियाणा सरकार ने पराली बेचने वाले किसानों को 500 रुपये प्रति टन के हिसाब से सब्सिडी देने के फैसले का भी असर हुआ है। वहीं पंजाब ने भी शुरुआती तौर पर बेलर मशीनों पर सब्सिडी मुहैया कराई है।
जिस तरह हरियाणा में आईओएल का 2जी एथेनाल का बड़ा प्लांट लग रहा है और इसमें भी 25-30 प्रतिशत पराली का बायोमास की तरह इस्तेमाल किया जाना है। उससे निश्चित तौर पर बदलाव देखने को मिलेगा।
शुगर मिल साल में छह माह बंद रहती हैं, लिहाजा इस समय का भी सदुपयोग किया जा सकता है. शुगर मिल बिजली बनाकर इसे ग्रिड को बेचेंगे तो वे भी मुनाफे में रहेंगी। सुव्रत का कहना है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां कैप्टिव प्लांट लगाकर अपने लिए खुद बिजली बनाते हैं
उनके लिए भी ईंधन के तौर पर 1-20 फीसदी पराली का इस्तेमाल अनिवार्य बना दिया जाए तो बड़ा बदलाव आ सकता है। इस पराली को टोरिफिकेशन की प्रक्रिया के जरिये पैलेट में तब्दील किया जाता है और फिर ईंधन की तरह उपयोग में लाया जाता है।
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