माननीय उच्च न्यायालय, चण्डीगढ द्वारा बाल विवाह रोकने के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए है कि ज्यादातर मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा व गिरजाघर शादी करवा रहे है। लेकिन उनके द्वारा शादी से संबंधित कोई भी रिकाॅर्ड, जैसे कि जन्म प्रमाण पत्र, दसवी कक्षा की अंकतालिका, आधार कार्ड, मतदाता कार्ड आदि नही लिए जाते है। बिना प्रमाण पत्र के लडका एवं लडकी की उम्र का पता नही लग पाता है जिसके चलते बाल विवाह हो जाता है।
माननीय अदालत ने जारी दिशा-निर्देशों में कहा है कि धारा 9 बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अन्र्तगत जो भी 18 वर्ष से अधिक आयु का वयस्क पुरूष बाल विवाह अनुबंधित करता है तो उसे कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि 2 वर्ष या जर्माने से जो एक लाख रूपये हो सकता है या दोनो।
इसी तरह धारा 10 बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अंतर्गत जो कोई भी बाल विवाह करता है, उसका संचालन करता है, निर्देशन करता है या उसका पालन करता है तो उसे कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा जो 2 वर्ष या जुर्माने से जो एक लाख रूपये हो सकता है जब तक वह यह साबित ना कर दे कि उसके पास यह साबित करने का कारण है कि यह एक बाल विवाह नही था। दूसरे शब्दों में जो बाल विवाह करता है, करवाता है आदेश देता है वह दण्ड का भागी होगा जैसे दूल्हा, पंडित, मौल्वी गुरूद्वारा के ग्रन्थि, गिरजाघर का पादरी इत्यादि।
बाल विवाह को रोकने के माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए हैः-
डीसीपी मुख्यालय डॉ अर्पित जैन ने कहा कि उपरोक्त दिशा निर्देश माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए हैं जिनकी पालना करना अति आवश्यक है। दिशा निर्देशों की पालना न करने वालों के खिलाफ फरीदाबाद पुलिस द्वारा कानून के तहत कार्यवाही की जायेगी।
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