आज पूरे दिन ट्वीटर पर करीब एक लाख लोगों द्वारा #दुष्यन्त _किसान_या_कुर्सी के ट्वीट जमकर वायरल किये जा रहे है तकरीबन 2 घंटे में 1 लाख से ज्यादा लोग इस पर ट्वीट कर चुके है किसानों की लड़ाई अब जमीनी स्तर के साथ सोशल मीडिया पर भी लड़ी जा रही है । किसानों को हक़ दिलाने की इस लड़ाई में जहा अभी तक लोग उनके साथ मैदान में खड़े थे और अब इस माध्यम से भी लोग अपना समर्थन दे रहे है ।
रोटी की कीमत सरकार को समझाने के लिए किसान को आज सड़को पर बैठना पड़ रहा है कृषि कानून के विरोध में पंजाब व हरियाणा के किसान लगभग दो सप्ताह से आंदोलनरत है। इस आंदोलन को ख़तम करने के लिए सरकार और किसानो के बीच वार्ता भी हुई लेकिन बेनतीजा की इस वार्ता से किसानो की समस्या का निदान नहीं हो सका ,,,किसानो ने सरकार से विशेष सत्र बुलाकर इन बिलो को वापस लेने के लिए कहा है।
कृषि बिलो को लेकर हरियाणा व पंजाब के किसानो के मिज़ाज़ सरकार के खिलाफ ज़्यादा सख्त नजर आ रहे है। वही हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला इस आंदोलन पर चुप्पी साधे हुए है यह बात किसानो को सही नहीं लग रही है खुद को किसान नेता कहने वाले छोटे सरकार ( दुष्यंत चौटाला ) का किसानो के साथ न खड़ा होना उनकी सरकार का तख्ता पलट कर सकता है।
हालाँकि दुष्यंत चौटाला का यह रवैया लगातार भाजपा और जजपा सरकार पर भारी पड़ सकता है लेकिन दुष्यंत के छोटे भाई जजपा पार्टी की नाकामयाबी को रफू करने का काम कर रहे है एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी की मखमल में टाट का पैबंद लगाया जाता है लेकिन यहाँ पर उल्टा है जिस तरह की नीतिया जजपा सरकार लेकर चल रही है और छोटे सरकार के भाई डेमेज़ कंट्रोल का काम कर रहे है उससे तो लगता है टाट में मखमल का पैबंद लगाया जा रहा है
अगर राजनीति के पैमानों की बात जाए तो यह आंदोलन भाजपा और जजपा सरकार के लिए हानिकारक साबित हो सकता है यह समय जजपा सरकार के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के समान था जिसको जितना दाना डाला जाता उतना ही आने वाले समय में वोट के रूप अंडे देने वाली बनती।
एक समय था जब किसानो के आवाज को बुलंदियों तक पहुंचने वाली सरकार ही ताऊ देवी लाल की सरकार थी। दोनों ही पार्टियों का मानना था की यह समय प्रदेश की जतना को लुभाने वाला समय है क्योंकि साल 2024 में चुनाव होने है लेकिन जिस तरीके से किसान दोनों ही पार्टी से नाराज है उससे लगता है जनता इस बार इनके साथ नही खड़ी होगी ।
ऐसा नहीं है की किसान बेवजह ही सरकार से रूठकर बैठे है इसकी वजह है की जब किसान 26 को दिल्ली पहुंचे तो दुष्यंत ने एक शब्द किसानो के लिए नहीं बोला तो ऐसे नेता को कैसे अपना नेता कहे दे।
जब किसान दिल्ली पहुंचे और उनको वार्ता के लिए बुलाया गया तब राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं थी , वहा पर सारा खेल केंद्र सरकार के हाथ में था। सूत्रों के अनुसार यह भी बताया गया की दुष्यंत ने बेसक सरकार से किसान पक्ष का कोई हवाला नहीं दे पाई हो पर किसान नेताओ के संपर्क में वो रहे है ।
कुछ समय पहले जब इस बिल को पास किया गया था तो किसान का बेटा बनकर दुष्यंत किसानो के साथ आ खड़े हुए थे लेकिन इस समय एक भी बार बात नहीं की ऐसा करना उनकी कुर्सी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है । परन्तु इसके दो पहलु भी है शायद उनको यह डर सता रहा है की अगर कुछ बोलै गया थो कुर्सी खो सकते है लेकिन इस समय के हालत यह है की एक तरफ कुआँ एक तरफ खाई।
आने वाले समय बताएगा की किसान आंदोलन का क्या परिणाम होगा और उस परिणाम के बाद आने वाले चुनाव में सरकार का क्या परिणाम होगा है ।
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