किसानों ने देश के दो सबसे सशक्त कारपोरेट घरानों अम्बानी और अदानी पर सीधा हमला बोल दिया है। रिलायन्स और अदानी के उत्पादों का बहिष्कार और इन कारपोरेट घरानों के प्रतिष्ठानों का घेराव करने का किसानों का आह्वान अत्यन्त साहसपूर्ण कदम है।
ध्यान रहे बीएसएनएल को आज भी 4 G नहीं दिया गया जबकि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2016 मे जियो के प्रचार में अपनी फोटो लगाने की अनुमति दी और अब रिलायन्स को 5 G की सुविधा । निश्चय ही अम्बानी और अदानी का बहिष्कार और घेराव एक ऐसा कदम है जिससे न केवल सत्तारूढ़ दल अपितु विपक्ष के कई बड़े दल भी सकते में आ गए हैं।
ध्यान रहे केन्द्र सरकार ने लखनऊ सहित 06 एयरपोर्ट अदानी को 50 वर्ष के लिए मात्र 01रु में दे दिया है। विद्युत वितरण के निजीकरण हेतु 20 सितम्बर को जारी किए गए दस्तावेज में लिखा है – पूरे डिस्काम की सारी जमीन निजी कंपनियों को मात्र 01 रु में दे दी जाएगी।
इस दृष्टि से कारपोरेट घरानो पर किसानों का हमला निश्चय ही एक साहसपूर्ण कदम है – एक ऐसा कदम जिसका साहस विपक्ष भी नही दिखा सका।किसान आन्दोलन के दबाव में सरकार लिख कर देने के लिए मजबूर हो गई कि इलेक्ट्रिसिटी(अमेंडमेंट) बिल 2020 वापस लिया जाएगा
यह भी कारपोरेट पर ही हमला है। किसान आन्दोलन एक निर्णायक मोड़ पर है। राजनीति से ऊपर रख कर बुनियादी मुद्दों पर ही चलता रहा तो निश्चय ही एक ऐतिहासिक आन्दोलन बन जायेगा।
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