पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक समय समय पर ग्लोबल वॉर्मिग और ग्रीन हाउस गैसों के प्रभावों को लेकर चेतावनी देते रहते हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे ज्यादा बुरा असर ग्रीन लैंड और आर्कटिक द्वीप पर पड़ रहा है। अब हाल ही में ग्रीनलैंड में स्थित बर्फ के पहाड़ का एक बड़ा हिस्सा उत्तरी-पूर्वी आर्कटिक में टूट गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन का साक्ष्य है।
वहीं नेशनल जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ डेनमार्क एंड ग्रीनलैंड ने सोमवार को बताया कि हिमनद का जो हिस्सा टूटा है वह 110 वर्ग किलोमीटर बड़ा है। यह एक बड़े पहाड़ से टूटा है जो करीब 80 किलोमीटर लंबा और 20 किलोमीटर चौड़ा है। आपको बता दे कि 1999 से अभी तक इस पहाड़ से 160 वर्ग किलोमीटर का हिमनद टूट चुका है जो न्यूयॉर्क में मैनहाटन के क्षेत्रफल से दोगुना है।
जीईयूएस के प्रोफेसर जेसन बॉक्स का कहना है कि आर्कटिक के सबसे बड़े बर्फ के पहाड़ के यूं लगातार पिघलने से हम सभी को चिंतित होना चाहिए। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि बर्फ की ऐसी मोटी चादरों का पिघलना ग्लोबल वॉर्मिंग की ओर इशारा कर रही हैं।
वक्त रहते इस पर ध्यान न दिए जाने से सूरज की खतरनाक यूवी किरणें धरती पर सब कुछ जलाकर खाक कर देंगी। सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला कि ये ग्लेशियर 29 जून से लेकर 24 जुलाई के बीच चार बार में टूटकर अलग हुए हैं। इसका सबसे बड़ा टुकड़ा जो चंडीगढ़ के बराबर का है।
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