अपनी किस्मत को लेकर तो सब रोते रहते हैं लेकिन जो किस्मत के भरोसे न बैठे कर अपनी मेहनत पर भरोसा करते हैं वह जीवन में हमेशा कामयाब होते हैं। आज एक ऐसे ही शख्स की हम बात करने वाले हैं जिन्होंने अपनी मेहनत से अपना भविष्य बनाया।
हम बात कर रहें है राजस्थान के पुष्कर में रहने वाले भरत तराचंदानी की, उन्होंने बचपन में ही घर की आर्थिक स्तिथि ठीक न होने के वजह से छोटी सी उम्र में ही काम करना शुरु कर दिया था ।
जब वह छठवीं क्लास में थे, तब उनके पिता का एक्सीडेंट हो गया था और डॉक्टर ने उन्हें बेड रेस्ट के लिए बोल दिया था। उनके पिता जी घर पर अकेले कमाने वाले थे, उनके एक्सीडेंट के बाद घर में आर्थिक तंगी शुरू हो गई।
पिता के एक्सीडेंट के समय भरत जी और उनके भाई बहन सब छोटे थे , और उनकी माँ को भी कुछ समझ नही आरहा था कि वो क्या करे। ऐसे में उनकी माँ ने सिलाई बुनाई का काम शुरू किया और उनके बड़े भाई ने एक मेडिकल स्टोर पर जाना शुरू किया।
भरत ने भी अपनी घर की स्तिथि को देखकर एक किरयाने की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया। सुबह दुकान पर जाने से पहले वह अखबार बाटने का काम भी किया करते थे और इसके साथ साथ एसटीडी पीसीओ की दुकान पर काम किया।
ऐसे उन्होंने और उनके परिवार ने सब छोटा बड़ा काम कर के कुछ वर्ष अपनी परिवार की गाड़ी चलाई। कुछ समय बाद उनके बड़े भाई को जुगाड़ कर के दक्षिण अफ्रीका जाने का मौका मिला और वहाँ जाकर उनके भाई ने नौकरी करना शुरू किया ।
उनके भाई जो भी पैसे भेजते उससे वह लोग सिर्फ अपनी उधारी ही चुका पाते थे। उनके भाई ने 4 वर्ष वहा नौकरी करी और उसके बाद पुष्कर वापस आगए और यहाँ आकर नौकरी करना शुरू कर दिया।
जब तक उनके बड़े भाई आए वहां से आए वह 12 वी कक्षा तक पढ़ाई कर चुके थे, अपने मामा के जरिए उन्हें दुबई की टेक्सटाइल कंपनी में जॉब मिली और वह दुबई चले गए। वहां जाकर भी उनका स्ट्रगल चलता ही रहा पर उनकी स्तिथि में कोई सुधार नही आया।
भरत ने दुबई में पाँच वर्ष जॉब की और जब वो वहा से आए तो उनके बड़े भाई ने बोला की कबतक दूसरो के लिए कार्य करते रहेंगे अपना कुछ काम करना चाहिए। उन्होंने और उनके भाई ने मिलकर पुष्कर में 6 लाख की दुकान लीज ली।
जहा दुकान लीज पर ली वहां डेवलपमेंट नही हुई थी, लेकिन वहां होटल और धर्मशालाएं बहुत हैं, जिससे उन्हें उम्मीद थी कि यहां ग्राहक जरूर आएंगे और उन्होंने हिम्मत करके दुकान वहीं ओपन करी।
उन्होंने गाइड और ड्राइवर्स को पांच परसेंट इंसेंटिव देना शुरू कर दिया और साथ ही यह शर्त रखी कि जितने ग्राहक तुम दुकान पर लाओगे, उतना इंसेंटिव तुम्हें भी मिलेगा और दस से पंद्रह परसेंट डिस्काउंट ग्राहकों को भी वो देंगे। उनकी यह स्कीम काम कर गई और दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगना शुरू हो गई। उनकी दुकान पर बसों से टूरिस्ट आने लगे और रात में दो-दो बजे तक ग्राहकी होनी लगी।
उन्होंने बताया कि ये सब देखकर आसपास के कई व्यापारियों ने उनकी दुकान के आसपास दुकानें खोलना शुरू कर दी और धीरे-धीरे मार्केट डेवलप हो गई। सब जगह एक जैसा माल मिलने लगा। फिर उन्हें लगा कि अब कुछ बड़ा नहीं किया तो फिर बिजनेस पीछा रह जाएगा। इसलिए उन्होंने जो भी पैसा कमाया था, वो सब लगाकर दो दुकानें और खरीदीं। तीनों दुकानों को मिलाकर उन्होंने एक शोरूम बनाया।
तब से आज तक उन्हें और उनके परिवार को पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। अब उनके पास पुष्कर में पांच दुकानें हैं। जिस दुकान पर वह बैठते हैं, उसका ही टर्नओवर एक करोड़ से ऊपर है। दस से पंद्रह लोगों को वह रोजगार भी दे रहे हैं।
भरत को पढ़ने लिखने का शोक बचपन से ही था लेकिन घर की स्तिथि के वजह से पढ़ाई नही कर पाए लेकिन अब बिजनेस के साथ वह अपनी पढ़ाई भी कर रहे हैं।
उन्होंने अपने अनुभव से ही बताया हैं कि – भले ही जो किस्मत में हो वो आपको न मिले, लेकिन जो आपकी मेहनत का है, वो आपसे कोई नहीं छीन सकता।
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