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कौन है फरीदाबाद का यह व्यक्ति जिसने अरावली को बचाने के लिए छोड़ दी नौकरी

फरीदाबाद : पर्यावरण प्रेमियों की बात ही अलग होती है यह लोग पर्यावरण के प्रति इतने संवेदनशील होते है की किसी भी हद तक जा सकते है ।ऐसे ही एक पर्यावरण प्रेमी के बारे बातएंगे फरीदाबाद के गांव मांगर बनी के सुनील हरसाना ने अपनी नौकरी पर्यावरण को बचाने के लिए छोड दी ।

सुनील इतने इसके प्रति इतने सवेदनशील है की उन्होंने 10 साल पहले अपनी नौकरी छोड़ दी। आपको बतादे की सुनील हरसाना ने पर्यावरण को बचाने के लिए विगत 10 सालो से जुटे है इस मुहीम में वो खुद तो सक्रिय हुए ही है

कौन है फरीदाबाद का यह व्यक्ति जिसने अरावली को बचाने के लिए छोड़ दी नौकरी
सुनील हरसाना

उन्होंने दुसरो को भी इसके लिए जागरूक किया है वही फरीदाबाद के अन्य लोग भी इस मुहीम से जुड़ गए है सुनील का यह प्रयास पर्यावरण सरंक्षण के अति आवश्यक है ।

सुनील बताया की अब वो दो पर्यावरण सम्बन्धी रिसर्च आधारित संस्थाओ के साथ काम कर रहे है। वही उन्होने अरावली के लिए भी उन्होंने स्थानीय लोगो को भी अरावली सरंक्षण के लिए जागरूक किया है ।

मांगर गांव की खूबसूरत तस्वीर

फरीदाबाद की शान कही जाने वाली अरावली की पहाड़ियों की गोद में एक खूबसूरत गाँव मांगर बनी बसा हुआ है . सुनील उसी गांव के रहने वाले हैं वो एक ग्राफिक डिजाइनर थे और अपनी जीवन को कुशल बनाने के लिए कदम बढ़ रहे थे ।

लेकिन वर्ष 2010 में सरकार के एक नोटिफिकेशन ने उनके जीवन का लक्ष्य ही बदल कर रख दिया है सरकार ने 2010 में इस गांव को जंगल घोषित होने के कारण उनकी जिज्ञाषा को बढ़ा दिया था ।

फरीदाबाद की अरावली की पहाड़ियां

सुनील को खुद के गांव के बारे में जानने की इच्छा को बढ़ा दिया था। फिर उन्हें पता चला की अरावली का एनसीआर में बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन बाबजूद इसके बाद यंहा पर प्लाटिंग शुरू हो गई है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है

साथ ही सुनील ने इसको लेकर काफी जानकारी हासिल की और उनको पता चला की अरावली की पहाड़िया रेगिस्तान से आने वाली धूल को रोकने का कार्य करती है अगर अरावली नहीं होती तो पूरा एनसीआर पूरी तरह से रेगिस्तान में बदल जाता।


बीते करीब दो साल पहले सरकार ने अरावली में दो कृतिम झीलों में जैविक व ठोस कूड़े डालने की मंजूरी दे दी। लेकिन इसके बाद सुनिल और भी ज़्यादा सक्रिय होगये

इसके बाद में इन्होने अरावली में बनाने वाले फार्म हाउस और अन्य इमारतों को लेकर पत्र लिखे और क़ानूनी लड़ाई लड़ी इसका परिणाम यह हुआ की उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद कांता एनक्लेव को ढहा दिया गया लेकिन यह सफर अभी इतना लंबा है यहां पर थमा नही है सुनील अभी भी इस कार्य के लिए निरंतर कार्यरत है ।

Avinash Kumar Singh

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