आपने यह तो सुना होगा उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये। स्वामी विवेकानंद जी के इन शब्दों पर खड़ी उतरती है केशव की कहानी ज़िन्दगी में केशव ने बहुत ठोकरे खाई ।
दो बार स्टार्ट अप शुरु किया मगर फैल हो गए और पिता जी से जो उधार लिए थे वो भी डूब गए लेकिन इसके बावजूद उन्होनें हार नही मानी एक बार फ़िर खड़े हुए और ऐसा आइडिया के साथ मार्किट में आए की हर जगह केशव का नाम छा गया।
केशव ने इंजीनियरिंग में एडमिशन यह सोच कर लिया था की कुछ इनोवेटिव कर पाएंगे लेकिन ऐसा नही था। कालेज में थ्योरी पढ़ाई कराई जा रही थी लेकिन केशव कुछ इनोवेशन करना चाहते थे। इसलिए वह पहले दिन से ही बिजनेस की तरफ़ सोचने लगे।
सैकेण्ड ईयर में केशव ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनने का सोचा और एक वेबसाइट बनाई यहां स्टूडेंट से जुड़ी हर चीज़ हो। नोटस से लेकर लेक्चर्स तक सब चीज़े अपलोड करने पर भी उन्हें कुछ खास रिस्पोंस नहीं मिला। साथ ही दोस्तो से जो पैसे उधार लिए थे वो भी डूब गए।डर कर आगे बड़ने वाले केशव आज अपनी कहानी बड़े ही गर्व के साथ बताते है।
केशव का कहना है की वो फ़ैल तो हुए लेकिन फ़िर भी निराश नही थे। क्युकी फ़ैल होने के बाद उन्हे लगा की वह ज़िन्दगी में कुछ कर सकते है। और हार ना मानने के वजह से वह रुके नही।थर्ड ईयर में उन्हें एक आइडिया आया ।
उन्होने देखा की लोगो को बहार घुमना फिरना पसंद आता है और ग्रुप में जाने का प्लान बनता है तो कई मेम्बर टाईम पर उठ नही पाते। तभी उन्होने एक ऐसा एप बनने का सोचा यहां सब ग्रुप कनेक्ट हो सके। एप सबको उठा भी देगा और साथ ही अगले दस मिनट तक उनकी मॉनिटरिंग भी करेगी।
पिताजी को ये कांसेप्ट बताया तो वह पैसे इन्वेस्ट करने के लिए तेयार हो गए। लेकिन इस एप में कोई ना कोई प्रॉब्लम आती ही रहती थी । इसके पीछे करीब ढाई लाख रुपए इन्वेस्ट किए लेकिन वह दुबारा फ़ैल हो गए और इस बार वह बहुत दुखी हुए क्युकी उनके सभी दोस्त अच्छी जगह इंटर्नशिप कर रहे थे।
वह बहुत डिस्टर्ब हो गए की घर से भाग गए। चार दिन तक दिल्ली स्टेशन, मेट्रो स्टेशन, लोटस टेंपल पर गुज़रे। एक दिन उन्होंने देखा की मेट्रो स्टेशन पर एक आदमी बाइक साफ करने के लिए डस्टर ढूंढ रहा था। उसने दुसरे की बाइक का डस्टर लिया अपनी बाइक साफ की और चला गया।
यह देख के उनको एक आइडिया आया की क्यों ना वह एक ऐसी चीज़ बनाए जिससे गाड़ी भी साफ हो जाए और सामान भी कैरी ना करना पड़े।
लगातार नाकामयाबी मिलने व पैसों को लगातार नुक्सान मिलने से परेशान केशव हार ना मानते हुए कोईश करते रहे। 15 हज़ार व ढाई लाख के नुक्सान से जूझने वाले केशव आज दस से बारह लाख रुपये प्रति महीना कमाते है।
घर आकर इस बारे मे उन्होने बताया और सबको आइडिया पसंद आया और इसपर गूगल सर्च किया और बाइक ब्लेजर बनने का सोचा। एक बॉडी बाइक कवर जो बाइक के साथ रहे और साफ रखे। बहुत रीसर्च के बाद आखिरकार वह तेयार हो गए। पहले ये पैट्रोल टैंक व सीट को कवर कर पाता था लेकिन अपडेट के बाद पूरी बाइक इससे कवर हो जाती है।
दिल्ली के ट्रेड फेयर में इस प्रोडक्ट लॉन्च किया था। जहां से उन्हें काफी पब्लिसिटी मिली। इसके बाद सोशल मीडिया के जरिए लोगों को उनके प्रोडक्ट के बारे में पता चला। फिर जो लोग कवर लगवाकर जाते थे, उनकी गाड़ी को देखकर कई लोग आने लगे। 2018 में उन्होने कंपनी बना ली थी। अब दिल्ली के साथ ही गाजियाबाद में भी ब्रांच है।
Written by : Isha singh
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