सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौर में बहुत से महान क्रांतिकारी, देश प्रेमी स्वंतत्र सेनानियों की सूची में शामिल है जिन्होनें हमारे देश को आज़ाद कराने में अहम भुमिका निभाई है।
उन्होनें अपने साहस से ब्रिटिश शासन से अपने देश के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अपना जीवन समर्प्रित कर दिया था।लेकिन ऐसे कई नाम है जो भले स्वंतत्र सेनानियों की सूची में शामिल ना हुए हो। लेकिन उनकी साहस भरी कहानी को भुला नही सकते। उनके अंतहिन बलिदान दिया ताकि हमारा देश स्वतंत्र हो सके।
जैसे पांच उंगलियाँ मिला कर एक हाथ बनता है ठीक उसी प्रकार क्रांतिकारी, देशभगत सब मिल कर एक जुट हो गए। देश प्रेम को मन में लिए ऐसे कई लोग एक साथ चल दिए और मन में ठान लिया की देश आज़ाद होगा। उनकी मंजिल मुशिकल थी लेकिन नामुमकिन नहीं।
अपने साहस से हर मुशिकल का सामना कर आगे बड़े। आज हम एक ऐसे ही देशभगत की कहानी से आपको रुबुरु करायेंगे जिसका नाम शायद ही अपने सुना होगा लेकिन इनके साहस को आप नज़रंदाज़ नही कर पाएंगे।
हरियाणा में सोनीपत जिले के गाँव लिबासपुर के महान क्रांतिकारी उदमी राम सन् 1857 में अपने गाँव के नम्बरदार थे और देशभक्ति उनके रग-रग में भरी हुई थी। उन्होने देश के लिए अपना घर ,परिवार व दोस्त सब कुछ गवा दिया।
उदमी राम के साहस के किस्से पुरे गाँव मे मशहूर थे।उन्होनें अपने साथियों के साथ मिल कर 22 क्रांतिकारियों का एक संगठन बनाया जिसमें गुलाब सिंह,जसराम,रतिया आदि शामिल थे। यह संगठन ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध काम करते थे।
इस संगठन के लोग एक जुट होकर अपने पारंपरिक हथियारों मसलन, लाठी,जेली, कुल्हाड़ी आदि से अंग्रेज अफसरों पर धावा बोल देते है। और उन्हे मौत के घाट उतार देते थे। घटना के बाद यह खबर अखबार के ज़रिये पूरे गाँव में फ़ैल गई।
राठधाना गाँव निवासी एवं अंग्रेजों के मुखबिर ने भी सुनी। उन्होनें सारी जानकारी अंग्रेज महिला को दी और डराया कि बहुत जल्द क्रांतिकारी उसे भी मौत के घाट उतारने वाले हैं। यह सुनकर अंग्रेज महिला डर के उससे बोला कि अगर वह उसकी मदद करे और उसे पानीपत के अंग्रेजी कैम्प तक किसी तरह पहुंचा दे तो उसे मुंह मांगा ईनाम देगी। वह तुरंत अंग्रेज महिला की मदद करने को तेयार हो गया।
पानीपत के अंग्रेजी कैम्प पर पहुँचते ही महिला ने सभी गोपनीय जानकारियां अंग्रेजी कैम्प में दर्ज करवाईं और यह भी कहा कि विद्रोह में सबसे अधिक भागीदारी लिबासपुर गाँव ने की है और उसका नेता उदमीराम है। उसके बाद लिबासपुर गाँव में अंग्रजो ने कहर बरसना शुरु कर दिया।
उदमी राम का देश की तरफ़ इतना प्यार अंग्रजो को बर्दाश्त नही हुआ। उन्होनें उदीम राम व उनकी पत्नी को पीपल के पड़ पर किलों से ठोंक दिया। इतनी दर्दनाक मौत उदमी राम ने कबूल थी, लेकिन गुलामी के नीचे दबना उन्हें मंज़ूर नही था।
उदमी राम व उनकी पत्नी को अंग्रजो की भयंकर यातनाएं से 35 दिन तक गुज़रना पड़ा। पानी माँगने पर पिशाब पिलया गया व खाने के नाम पर कोडे खिलाए गए। सिर्फ़ इतना ही नही उदमी राम के पिता को पूरे गाँव को भयंकर सजा मिली और आज भी उस सजा को याद करके पूरा गाँव कांप उठता है।
अंग्रजो ने उदमी राम के सहयोगी मित्रों को बहालगढ़ चैंक पर सरेआम सड़क पर लिटाकर पत्थर के कोल्हू के नीचे बुरी तरह रौंद दिया था।
Written by: Isha singh
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