आपने अक्सर ऐसा देखा होगा कि अमूमन रेलगाड़ी के निचे कोई ना कोई पशु आ ही जाता है। आपके सामने भी ऐसी घटना घटी होगी। रेल ट्रैक के आसपास के क्षेत्र में बेसहारा जानवर अक्सर ही ट्रेन से टकरा जाते हैं। बेशक सुनने और देखने में ट्रेन से पशु कटने की घटना सामान्य लगती है, लेकिन ट्रेन से पशु कटने पर रेलवे को करोड़ों रुपये का नुकसान होता है।
भारतीय रेल को देश की धड़कन कहा जाता है। भारतीय रेल की कमाई का सीधा असर भी देश की अर्थव्यस्था पर पड़ता है। जब भी पशु कटने के बाद ट्रेन रुकती है तो बिजली या डीजल का खर्च बढ़ जाता है।
ट्रेन से किसी व्यक्ति या जानवर की कटने की खबर बहुत आम होती हैं। जानवर के अवशेष व मांस पहियों में फंस जाने से ट्रेन रुक जाती है या अन्य किसी कारणों से भी ट्रेन रुक जाती है। पैसेंजर और गुड्स ट्रेन से जानवर कटने का खर्च अलग-अलग है। दो-तीन साल में ट्रेन से पशु कटने की घटनाएं बढ़ गई हैं।
घटनाओं से रेलवे काफी नुकसान झेलता है। यह नुकसान हज़ारो या लाखों का नहीं बल्कि करोड़ो में होता है। घटनाओं के ज़्यादा होने से 15-15 मिनट तक ट्रेन लेट हो रही हैं। कुछ खास ट्रेन के मामले में लेट होने पर तो यात्रियों को भी भुगतान करना होता है। ट्रेन के पुन: रवाना होने तक जितना समय लगता है, रेलवे को 20 हजार रुपये प्रति मिनट की क्षति होती है।
पशु कटने के बाद जब भी ट्रेन रूकती है तो। डीज़ल और बिजली का खर्चा बढ़ जाता है। ट्रेन से पशुओं के कटने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। डीजल से चलने वाली ट्रेन के एक मिनट खड़ी होने पर 20,401 रुपये की क्षति होती है। बिजली इंजन की ट्रेन के एक मिनट रुकने पर 20,459 रुपये की क्षति उठानी पड़ती है।
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