वैसे तो फरीदाबाद का बल्लभगढ़ ऐतिहासिक नगरी से भी प्रचलित है। इसके पीछे कई मान्यताएं हैं और कहीं रहस्यमई जगह। जिसमें ना सिर्फ राजा नाहर सिंह का महल शामिल होता है बल्कि बल्लभगढ़ उपमंडल के गांव दयालपुर में बना हुआ पवित्र नान कसर और गुरुद्वारा भी इन्हीं जगहों में शामिल होते हैं।
जानकारी के मुताबिक इस सरोवर का निर्माण 17वीं शताब्दी में सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह के तीर छोड़ने से हुआ था। पहले इस इलाके में पानी की भारी कमी थी, लेकिन जब से यह सरोवर बना,
तब से यहां मीठे पानी की कमी नहीं हुई। फिलहाल गुरुद्वारे और सरोवर को बेहतर तरीके से बनाया जा रहा है। इसके लिए अलग से इमारत बनाई जा रही है और सरोवर को भी नया लुक दिया जा रहा है। इस पर करीब 8 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
दयालपुर स्थित गुरुद्वारे के संत बाबा हरदयाल बताते हैं कि इस प्राचीन सरोवर का इतिहास सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह साहिब की जीवनी में मिलता है। इसके मुताबिक, गुरु हरगोविंद सिंह ने बादशाह जहांगीर की कैद से 52 राजाओं को रिहा कराया था,
उनमें बल्लभगढ़ रियासत का राजा भी शामिल था। राजा की मृत्यु के कुछ वक्त बाद गुरु हरगोविंद सिंह सिख धर्म का प्रचार करते हुए बल्लभगढ़ पहुंचे तो स्वर्गवासी राजा के बेटे ने उनका स्वागत किया था।
राजकुमार के आग्रह पर हरगोविंद सिंह 3 दिन तक वहां रुके। उस दौरान उनके पास आए लोगों ने बताया कि कि यहां के निवासी मीठे पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं।
इस पर गुरु हरगोविंद सिंह ने एक तीर छोड़ा और संगत से कहा कि जाओ तीर ढूंढकर लाओ। लोगों को गांव दयालपुर में तीर गड़ा मिला, उसे निकालते ही मीठा पानी निकलने लगा।
गुरु ने यहां सरोवर की स्थापना की और उसका नाम गुरु नानक देव के नाम पर नानकसर रखा गया। गुरु हरगोविंद सिंह ने कहा कि जो भी इस जल को पिएगा, उसके दुख दूर हो जाएंगे। वहीं, स्नान करने वाले भी सुखी रहेंगे।
8 जनवरी 1980 को संत बाबा हरदयाल सिंह ने इस जगह की पहचान की और यहां गुरुद्वारे का निर्माण कराया। इस वक्त साढ़े 4 एकड़ जमीन पर नए सिरे से गुरुद्वारे का निर्माण किया जा रहा है,
जिसमें 8 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके तहत गुरुद्वारे में 25 नए कमरे बनवाए जा रहे हैं और छत पर सरोवर का निर्माण किया गया है।
बाबा हरदयाल सिंह ने बताया कि जिस जगह तीर लगा था, वहां पर बोरिंग करके सबमर्सिबल लगा दिया गया है। उन्होंने बताया कि हर साल यहां गुरुपर्व काफी धूमधाम से बनाया जाता है और गुरुद्वारे को सजाया जाता है। फिलहाल इस नए गुरुद्वारे पर पाठ का आयोजन किया गया है। 2 दिसंबर को यहां पर भोग लगाया जाएगा।
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