देश में एक दिन में अंदर हज़ारों मुकदमें दर्ज होते हैं। आपराधिक मामलों में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि जो पक्ष निजी तौर पर सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा-89 के तहत आने वाले मुकदमे आपसी समझौते से निपटाते हैं, तो उन्हें मुकदमे की पूरी फीस वापस मिलेगी।
कोर्ट में ऐसे काफी मामले आते हैं जो रजामंदी से निपटा लिए जाते हैं। ऐसे ही मामलों के लिए ये फैसला काफी महत्वपूर्ण है। शीर्ष अदालत के इस फैसले से वादी आपसी समझ से दीवानी मुकदमे निपटाने के लिए प्रेरित होंगे।
यूं तो वो बात ही क्या, जो लफ्जों में बयां हो जाए, मगर फिर भी जिंदगी बातचीत है, बातचीत करते रहिए। क्या पता मध्यस्था निकल आये। आपस में ही आप निपटारा कर लें। जब शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया, तो कहा गया था सीपीसी की धारा- 89, तमिलनाडु न्यायालय शुल्क की धारा-69ए और वाद मूल्यांकन अधिनियम- 1955 में पक्षकारों के बीच अदालती विवाद निपटारे के तरीके शामिल होंगे।
इस प्रक्रिया से कोर्ट का समय भी बचेगा और साथ ही दोनों पक्षों का पैसा भी। ये सभी तरीके बाद में अदालत के पास कानूनी रूप से आ गए हैं। जब बातों से हल निकलता हो, तो क्या जरूरी है कि लड़ा जाए। इसी भावना के साथ भारतीय न्याय-प्रणाली में मध्यस्थता का समावेश किया गया है। 1955 अधिनियम की धारा 69ए और सीपीसी की धारा-89 के तहत विवादों के निपटान पर धनवापसी से संबंधित है।
सरल भाषा में यदि इसको समझा जाये तो, शीर्ष अदालत ने माना है कि जो पक्ष निजी तौर पर सिविल विवाद प्रक्रिया की धारा 89 के तहत विचार किए गए माध्यम के बाहर अपने विवाद को निपटाने के लिए सहमत होते हैं, वो भी कोर्ट फीस वापस लेने के हकदार हैं।
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