स्कूल में कई बार अपनी उम्र से बड़ी लड़कियों से सुना था कि हर महीने लड़कियों को एक बीमारी होती है जिसमें खून का रिसाव होता है। सुनकर थोड़ा अजीब तो लगता था पर फिर यह लगता था कि मुझे क्या करना है मुझे नहीं हो रही न। यह बात हर वह लड़की बोलती है जो महिलाओं की जिंदगी की माहवारी वाली स्थिति से वाकिफ ना हो।
माहवारी यानी पीरियड्स महिलाओं की जिंदगी का एक ऐसा सच जिससे छुपाया नहीं जा सकता या यह कह सकते हैं इसे छुपाने की जरूरत भी नहीं है। जब लड़कियां बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश करती है तो जिंदगी के रंग और शरीर के ढंग में काफी बदलाव देखने को मिलता है। यह सिर्फ लड़कियों के साथ ही नहीं बल्कि लड़कों के साथ भी होता है। यहां बदलाव की बात हो रही है।
पीरियड्स को लेकर काफी कुरीतियां समाज में व्याप्त है। चाहे वह यह कहना हो कि लड़कियां इस समय अपवित्र हो जाती हैं या फिर यह कहना कि इसे अलग कमरे में रखा जाए।
पीरियड्स कोई छुपाने वाली चीज नहीं है बल्कि यह तो वह चीज है जिसके बाद ही महिलाओं के जीवन का विकास होता है और वह अगली पीढ़ी को बढ़ाने के लायक हो जाती है। परंतु अब भी पीरियड्स को लेकर लोगों के मन में अलग धारणाएं हैं । चाहे वह मंदिर के बाहर खड़े रखना हो या बुजुर्गों के पैर ना छूना हो या फिर रसोई घर में प्रवेश वर्जित हो।
आज भी यदि कोई लड़की सेनेटरी पैड्स लेने मेडिकल स्टोर जाती है तो उसे काली पन्नी में छुपाकर दिया जाता है हालांकि इसके बारे में लोगों को काफी हद तक जागरूक किया भी गया है परंतु जमीनी स्तर पर अनभिज्ञता इस विषय में देखने को मिलती है।
जब पहली बार लड़की को पीरियड्स आते हैं तो काफी लंबी चौड़ी फेहरिस्त उनकी अम्मा उन्हें देती हैं जिसमें यह शामिल रहता है कि पूजा घर से दूर रहिएगा, अचार की बरनी से दूर रहिएगा और माहवारी खत्म होने के बाद बाल धोकर जरूर स्नान कीजिएगा। यह तो काफी छोटी लिस्ट है ग्रामीण क्षेत्रों में और भी ज्यादा नियमों का पालन करना होता है।
यह तो थी पीरियड्स को लेकर समाज के बातें अब बात करते हैं लड़की की। पीरियड के दौरान लड़कियों को किस तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती है इसकी बात करना भी बेहद जरूरी है। शरीर की जकड़न हो या मन की अकड़न पीरियड्स के दौरान हर लड़की के साथ आमतौर पर ऐसा होता है।
मूड स्विंग्स यानी पल में खुश होना पल में उदास हो जाना यह तो पीरियड्स की एक आम निशानी है। पीरियड के दौरान एक लड़की के अंदर काफी बदलाव देखने को मिलता है। वह बार-बार टॉयलेट जाती है, पूरे शरीर में दर्द रहता है विशेष तौर पर पेट में, मूड में बार-बार परिवर्तन होता है।
क्या पीरियड्स को लेकर समाज के नजरिए को बदला जा सकता है
यदि यह बात मुझसे पूछी जाए तो मैं कहूंगी काफी हद तक बदला जा सकता है। शहरी क्षेत्रों में इसको लेकर जागरूकता देखी गई है। लोग इसे अब अभिशाप के रूप में नहीं देखते परंतु पीरियड्स को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों व झुग्गी झोपड़ियों में काफी अनभिज्ञता देखने को मिलती है। आज भी कुछ लड़कियां पेड्स की जगह कपड़े का इस्तेमाल करती हैं जोकि उनके स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायक है।
सरकार अपने स्तर पर लोगों को जागरूक करने के लिए काफी कुछ कर रही है परंतु बदलाव की शुरुआत सबसे पहले अपने आप से ही होती हैं इसीलिए यदि कोई ऐसी लड़की या महिला हमें मिलती है जो इस विषय से अनभिज्ञ है उसे इसके बारे में जागरूक करें क्योंकि बदलाव चाहते हैं तो बदलाव करना पड़ेगा।
Written by Rozi Sinha
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