दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसान अपना शतक लगा चुके हैं। इनका यह शतक यहां आंदोलन करते – करते पूरा हो गया है। स्थिति यह है कि देश में किसान आंदोलन के सौ दिन पूरे हो चुके हैं। तीनों कृषि कानूनों को रद्द कराने के लिए किसान लगातार धरना दे रहे हैं। अब महापंचायतों और रैलियों का दौर आरंभ हो गया है।
इतने लंबे समय से दिल्ली को घेरे किसानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह संख्या हर दिन नया रिकॉर्ड बनाती है। गणतंत्र दिवस के बाद केंद्र सरकार की ओर से बैठक का बुलावा नहीं आया है।
सरकार और किसानों के बीच काफी बार बातें हुई हैं, बैठके हुई हैं लेकिन फिर भी कोई नतीजा अभी तक नहीं निकला है। अगर किसान आंदोलन का खर्च देखें, तो अभी तक वह 308 करोड़ रुपये के पार जा चुका है। इसमें ट्रैक्टर परेड, उससे पहले का आंदोलन और गणतंत्र दिवस के बाद अभी तक के 38 दिन का आंदोलन शामिल है।
रोटी से लेकर चाय और हर एक सुविधा आंदोलन में किसानों को मिल रही है। इसकी फंडिंग कहां से हो रही है इसका जवाब किसी को नहीं मिला है। इसके अलावा छोटी-बड़ी 60 से अधिक महापंचायतों का खर्च भी उक्त आंकड़े में जोड़ा गया है। हर किसान अपने हिस्से का चंदा देता है। कई संगठन भी किसानों की मदद के लिए आगे आए हैं।
काफी समय अब हो गया आंदोलन को। आम जनता से लेकर देश का हर नागरिक इस से परेशान है। सरकार ने बहुत सारी मांगों को माना है लेकिन फिर भी किसान बस ज़िद्द पकडे बैठे हैं।
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