हमारे देश में जयचंदों की कमी बिलकुल नहीं है। यहां सबसे बड़ी समस्या है धर्मनिरपेक्षता। जो बस एक वर्ग निभाता है बाकी तो सब शांतिदूत हैं। म्यांमार की न तो सीमा जम्मू कश्मीर से लगी हुई है और न ही दोनों संस्कृतियों के बीच कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध है, फिर भी यहां रोहिंग्या मुस्लिमों की संख्या इतनी कैसे हुई? यह सोचने की बात है।
जम्मू कश्मीर में रोहिंग्या मुस्लिमों को जानबूझ कर जम्मू के हिन्दू बहुल इलाकों में बसाया गया है। जम्मू-कश्मीर में पिछले करीब दो दशकों से म्यांमार से आकर अवैध रूप से रह रहे हजारों रोहिंग्याओं के खिलाफ सरकार ने कार्रवाई शुरू की है।
जयचंद जैसे लोग देश को अंदर से खोखला करने में लगे हुए हैं। इनका मकसद देश को कमज़ोर बनाना है। हजारों की तादाद में रोहिंग्या मुस्लिमों का यहाँ पहुँच कर बस जाना किसी साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है। असल में इससे पहले भी देश में एक खास मजहब के कट्टर लोगों द्वारा ‘डेमोग्राफी बदलने’, अर्थात जनसंख्या में दबदबा बढ़ाने की साजिश की बात होती रही है।
भारत में रह रहे शांतिदूत गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल हैं। सभी ऐसा जानते हैं। म्यांमार की न तो सीमा जम्मू कश्मीर से सटी है और न मौसम कहीं मेल खाता है। संस्कृति और खान-पान भी सर्वथा भिन्न है। बावजूद इसके हजारों की तादाद में रोहिंग्या नागरिकों का जम्मू कश्मीर में धीरे-धीरे पहुंचना और बसना एक बड़ी साजिश का नतीजा है।
यह बिलकुल भी संभव नहीं है कि किसी नेता के बिना इतनी बड़ी तादाद में शांतिदूतों का यहां आके बस जाना आसान रहा होगा। किसी ना किसी ने इनको यहां बसाने में सहायता की है। यही लोग देश को अंदुरनी घाव देने में लगे हुए हैं।
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