खट्टर सरकार ने राज्य के प्राइवेट सेक्टर में भी स्थानीय लोगों के लिए 75 फीसदी आरक्षण देने का कानून पास कर दिया है। इस कानून के बनने के साथ-साथ कई सवाल उठने लगे है।
दरअसल, हरियाणा सरकार द्वारा 75 फ़ीसदी आरक्षण का कानून पारित होने के साथ ही कई प्रकार के शंकाएं तथा सवाल उठने लगे हैं। मिलेनियम सिटी गुरुग्राम और औद्योगिक नगरी फरीदाबाद में स्थापित बहुराष्ट्रीय कंपनियों में अधिकांशतः प्रवासी लोग ही कार्यरत है। वही अब यह प्रश्न उठता है कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, जेनपैक्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी इस नियम की पालना करनी होगी।
आपको बता दें कि देश के संविधान का आर्टिकल 19 कहता है कि हर नागरिक को देश में कहीं भी जाकर किसी भी तरह की नौकरी, व्यापार करने का अधिकार है। लेकिन हरियाणा में आरक्षण के निजीकरण इससे अलग है. हरियाणा में प्राइवेट कंपनी की 75 फीसदी नौकरी कुछ शर्तों के साथ अब हरियाणा के ही लोगों को देनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने भी दिया है बयान
भारत क सर्वोच्च न्यायालय भी आरक्षण के मामले में अपना एक बयान दे चुका है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से यह पूछा है कि क्या 50 फ़ीसदी से ऊपर का आरक्षण दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल मराठा आरक्षण से संबंधित विषय पर पूछा है वही आपको बता दें कि देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी इस मामले में हस्तक्षेप कर चुकी है और पूछा है कि हरियाणा सरकार ने किस आधार पर इस कानून को लागू किया गया है।
क्या है 75 फीसदी आरक्षण नियम
75 फीसदी आरक्षण हरियाणा के लोगों को ही निजी नौकरी में देने का विधेयक नई स्थापित होने वाली और हरियाणा में पहले से चल रही उन कंपनियों, सोसाइटी, ट्रस्ट, फर्म पर लागू होगा जिनमें 10 से ज्यादा कर्मचारी हैं। हरियाणा में हरियाणा के लोगों को आरक्षण देने का ये फॉर्मूला 50 हजार रुपये मासिक वेतन तक वाली नौकरियों में लागू होगा। सभी प्राइवेट कंपनियों को हरियाणा सरकार के पोर्टल पर 3 महीने में रजिस्ट्रेशन कराना होगा.सभी निजी कंपनी को 3 महीने में बताना होगा कि 50 हजार तक की तनख्वाह वाले कितने पद हैं और इन पर हरियाणा से कितने लोग काम कर रहे हैं। अगर किसी ने हरियाणा के लोगों को ही 75 फीसदी नौकरी देने का नियम नहीं माना तो जुर्माने के साथ कंपनी का लाइसेंस-रजिस्ट्रेशन तक रद्द हो सकता है। जो कंपनी इस नियम को पूरी तरह लागू करेगी उसे सरकार इंसेटिव देगी।
हरियाणा सरकार द्वारा पारित इस नियम से रोजगार का संकट व्याप्त हो सकता है वही आलोचक भी इस नियम की जमकर आलोचना कर रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि क्या सरकार प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की बजाए रिक्त पड़े सरकारी पदों पर नियुक्ति नहीं कर सकती या फिर सरकार बेरोजगारी जैसे मुद्दे से अपना पल्ला झाड़ रही है।
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