दिल्ली की सीमाओं पर शतक लगा बैठे किसान अपनी जिद्द पर अभी भी अड़े हुए हैं। उनकी ज़िद्द के कारण रोज़ाना हज़ारों लोगों को तकलीफ हो रही है। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। 26 मार्च को भारत बंद के बाद होली और वैसाखी पर भी किसानों ने देशव्यापी प्रदर्शन करने की घोषणा की है।
भारत बंद की घोषणा काफी किसान संगठन पहले कर चुके हैं। हालांकि, यह आंदोलन एक तरह से भ्रम और झूठ की राजनीति का विषवृक्ष है। देश में जबसे किसान आंदोलन चला है उसी दिन से दिल्ली – एनसीआर के लोगों की मुसीबतें बढ़ी हैं।
किसानों का कम और राजनीति का आंदोलन यह जान पड़ता है। 100 दिनों से अधिक समय से किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं। अब होली पर किसान संगठन होलिका दहन की जगह कृषि कानून की प्रतियां जलाएंगे। वहीं वैसाखी पर हजारों किसान बॉर्डर पर जुटेंगे। हालांकि दिल्ली की सीमाओं पर कम होती भीड़ से भी किसान संगठन चिंतित नजर आ रहे हैं।
दिल्ली की सीमाओं को घेरकर बैठे किसान लगातार लोगों के लिए आफत बने हुए हैं। हालांकि, फिलहाल किसान नेताओं का कहना है कि अभी भीड़ जरूर कम हो रही है, लेकिन आगामी त्यौहार के सहारे आंदोलन को फिर से खड़ा करने की कोशिश करेंगे। 23 मार्च को देश के कई राज्यों से किसानों के जत्थे 23 मार्च को भगत सिंह के शहीदी दिवस पर टीकरी बॉर्डर पहुंचेंगे।
किसान नेता अभी तक बोलते आ रहे थे कि यह आंदोलन राजनीती से दूर है। वही नेता इन दिनों बंगाल में ममता बनर्जी के समर्थन में वोट मांग रहे हैं। किसानों को बरगला कर इस आंदोलन को तूल दिया जा रहा है। कई विपक्षी दल इसे सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ एक अवसर के रूप में देख रहे हैं।
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