कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, बस तबियत से एक पत्थर भर उछालने की देर है। बस कुछ ऐसी ही है, 2017 में आईपीएस बनी इल्मा अफ़रोज़ की संघर्ष की कहानी। यूपी के मुरादाबाद के छोटे से गाँव कुंदरकी की अंधेरी गलियों से निकलकर सेंट स्टीफेन से ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की चमक को अपनी आँखों में समेट वह देश सेवा के लिए वापस भारत लौट आई।
अपने सपनों को पूरा करने के लिए इल्मा ने खेतों में काम करने से लेकर ज़रूरत पड़ने पर लोगों के घरों में बर्तन मांजने तक का काम किया पर कभी हिम्मत नहीं हारी और देश सेवा के लिए आईपीएस ऑफिसर बनी। इल्मा की कड़ी मेहनत ने उन्हें सफलता की बुलंदियों पर पहुँचा दिया। इल्मा को विदेश में सेटल होकर एक बेहतरीन ज़िन्दगी जीने का मौका मिला तो इल्मा ने सेवा के लिए अपने वतन, अपनी मिट्टी और अपनी माँ को चुना।
इल्मा के पिता की असमय मृ-त्यु से परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उस समय इल्मा महज 14 साल की थी। इल्मा के पिता अकेले कमाने वाले थे। इल्मा की अम्मी ने इस मुश्किल घड़ी में इल्मा का होंसला नहीं टूटने दिया और इल्मा की पढ़ाई को जारी रखा। कुछ लोगों ने इल्मा की अम्मी को समझाया कि लड़की को पढ़ाने में पैसे बर्बाद करने की जगह उन्हीं पैसों से उसकी शादी करवा दे, जिससे उनका बोझ भी कम हो जाएगा। इल्मा की अम्मी एक कान से सबकी बातें सुनती और दूसरे से निकाल देती, क्योंकि उन्हें पता था कि इल्मा हमेशा से ही पढ़ाई में पढ़ाई में अव्वल है। इसलिए इल्मा की अम्मी ने दहेज के लिए पैसे जोड़ने की जगह इल्मा को पढ़ना जारी रखा।
सेंट स्टीफन से ग्रेजुएशन पूरी होने पर इल्मा को मास्टर्स के लिये ऑक्सफोर्ड जाने का अवसर मिला। इल्मा ऑक्सफ़र्ड चली गई। उनकी पढ़ाई का खर्च स्कॉलरशिप से तो पूरा हो जाता था मगर बाकी के खर्चों को पूरा करने के लिए इल्मा ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया, कभी छोटे बच्चों की देखभाल का काम करती रही। यहाँ तक कि लोगों के घर के बर्तन भी धोये पर कभी घमंड नहीं किया कि सेंट स्टीफेन्स से ग्रेजुएट लड़की कैसे ये छोटे-मोटे काम कर सकती है।
इल्मा बताती है कि- “जब वह वापस गाँव लौटी तो गाँववाले उनके पास अपनी -अपनी समस्या लेकर आते थे। उनको लगता था कि बिटियां विदेश से पढ़कर आई है। हमारी सारी मुसीबतों को दूर कर देगी। किसी को राशनकार्ड बनाना है, तो किसी को सरकारी योजना का लाभ लेना है। लोग बड़ी उम्मीद से मेरे पास आते थे”
लोगों की सेवा करने के लिए इल्मा के मन में यूपीएससी का ख्याल आया। यूपीएससी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके द्वारा वे अपने देश सेवा का सपना साकार कर सकती हैं। इल्मा कि अम्मी और भाई ने इल्मा को इसके लिए प्रेरित किया। बस फिर क्या था, इल्मा यूपीएससी की तैयारी में लग गई और आखिरकार इल्मा ने साल 2017 में 217वीं रैंक के साथ 26 साल की उम्र में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। जब सर्विस चुनने की बारी आयी तो उन्होंने आईपीएस चुना। बोर्ड ने पूछा भारतीय विदेश सेवा क्यों नहीं तो इल्मा बोली, “नहीं सर मुझे अपनी जड़ों को सींचना है, अपने देश के लिये ही काम करना है”
इल्मा ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की और मुस्कुरा कर चुनौतियों का सामना किया। आज लाखों-करोड़ों युवाओं के लिए वह एक रोल मॉडल और प्रेरणा का स्रोत है। इल्मा ने कभी घमंड नहीं किया और वह देशसेवा के लिए तत्पर है।
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