किसान आंदोलन में बैठे किसान नेताओं ने हमेशा से कहा है कि किसान छोटा – बड़ा नहीं होता, किसान तो किसान होता है। लेकिन इस बात पर आंदोलन में बैठे किसन अमल नहीं कर रहे हैं। दिल्ली की सीमा पर चल रहे आंदोलन को अब साढ़े चार माह पूरे होने काे हैं। मौसम में बदलाव के साथ ही एक तरफ आंदोलन का स्वरूप बदल रहा है तो दूसरी तरफ इसमें छाेटे और बड़े किसानों का फर्क भी साफ देखा जा सकता है।
शतक लगा बैठे किसान अपनी जिद्द पर अभी भी अड़े हुए हैं। टीकरी बॉर्डर पर कोई तो बांस-बल्ली के तंबुओं में ठहरा है और कोई पंजाब से कमरानुमा ट्राली ही लेकर आ रहा है। उसमें एसी भी फिट है। यह छोटे और बडे़ किसानों का ही फर्क दिखाता है।
यह आंदोलन एक तरह से भ्रम और झूठ की राजनीति का विषवृक्ष है। आंदोलन स्थल पर कहीं से भी बिजली का तार जोड़ने के बाद यह ट्राली लग्जरी कमरा ही बन जाती है। अब तापमान बढ़ रहा है तो ये एसी दिन ही नहीं रात में भी चल रहे हैं। अब आंदोलन में एसी लगी ट्राली जगह-जगह देखी जा सकती है। इस तरह का शगल पंजाब के किसानों में देखने को मिल रहा है।
आमजान भी किसानों से काफी खफा हो रहे हैं। बहरहाल, इस तरह की ट्रालियो पर कई-कई लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। सिर्फ बाहर से ही नहीं बल्कि अंदर से भी इन ट्रालियो को किसी सुसज्जित कमरे का रूप दिया गया है। किसान आंदोलन अब नया रूप लेता जा रहा है। हर दिन किसानों की संख्या भी घट रही है।
किसानों के साथ भेदभाव उनके ही अपने लोग कर रहे हैं। किसानों से प्रति अब आमजन की सहानुभूति मिटने लगी है। किसान नेता अभी तक बोलते आ रहे थे कि यह आंदोलन राजनीती से दूर है। वही नेता इन दिनों बंगाल में ममता बनर्जी के समर्थन में वोट मांग रहे हैं।
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