महामारी की दूसरी लहर ने देश में हाहाकार मचा दिया है। किसी भी राज्य में स्थिति संतोषजनक नहीं है। हर जगह स्तिथि चिंताजनक बनी हुई है। हर दिन बढ़ते मामलों ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। दिल्ली की सीमांओं पर बैठे हज़ारों किसान किसी भी समय महामारी का बम फोड़ सकते हैं। टिकरी बाॅर्डर की बात करें तो यहां पिछले 15 दिन से किसानों की संख्या 200 से 300 के बीच में थी, लेकिन अब पंजाब से करीब दो से तीन हजार बुजुर्ग किसान पहुंच गए।
किसानों को यह समझना होगा कि यह जानलेवा बीमारी किसी के फायदा का सौदा नहीं है। इस चिंताजनक स्थिति में 3 दिनों में 5 हजार और किसानों के आने की घोषणा की गई है।
लगातार बढ़ते मामलों में सिर्फ भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं है बल्कि किसान से लेकर बड़े – बड़े विपक्षी नेता भी हैं। किसानों को यह समझना होगा की इतनी बड़ी संख्या में वह इस आंदोलन को न चलाये। यह आंदोलन बम आंदोलन कहने के काबिल हो जाएगा। किसानों की बढ़ती संख्या के सामने मुट्ठी भर स्वास्थ्य विभाग की टीम कैसे महामारी टेस्ट करवाएगी। इसे लेकर संकट पैदा हो गया है।
नाराज़गी अगर किसानों को है तो वह है सरकार से न कि आम जनता से। आंदोलन को चालू रख कर किसान आम लोगों के लिए खतरा बन रहे हैं। जनता को तकलीफ देकर भला कौनसा किसान चैन से बैठ सकता है? इस आंदोलन ने काफी सवालों को जन्म दिया है। सरकार ने सभी किसानों का टेस्ट कराने व वैक्सीन लगाने को कहा है। दूसरी तरफ हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने बढ़ते मामलों और किसान आंदोलन को लेकर गंभीर चिंता जताई है।
सरकार की सहनशक्ति को किसान कमज़ोरी समझ रहे हैं। सरकार यदि चाहे तो चंद मिनटों में धरने पर बैठे किसानों को तित्तर-बित्तर कर सकती है लेकिन सरकार इन्हें अपना मानती है इसलिए सहन कर रही है। आमजन अगर किसानों वाले रवैये पर आ गया तो किसानों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है।
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