यह बात भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में फ़ैल चुकी है कि भारतीय हमेशा जुगाड़ लगाने में हमेशा आगे रहते हैं। जुगाड़ लगाने के पीछे एक मात्र उद्देश्य होता है कम लागत में अच्छी सुविधा प्राप्त करना। हम लोगों के पास किसी भी समस्या का देशी काट होता है। कई बार किसी वस्तु का विकल्प खोजने के क्रम में ऐसी वस्तुओं की खोज हो जाती है जो छोटे स्तर पर ही सही लेकिन जन उपयोगी होता है।
जुगाड़ करना तो ऐसा लगता है कि हर भारतीय बचपन से सीखता हुआ बड़ा होता है। ताजा उदाहरण भोपाल का है जहाँ एक हाईस्कूल पास मैकेनिक ने अपने बेटे के लिए जुगाड़ तकनीक से एक बाइक बना दिया।
अपनों को खुशियां देने के लिए भी हम कभी – कभी जुगाड़ लगा लेते हैं। यह जुगाड़ कभी सफल होते हैं तो कभी असफल। हाईस्कूल पास मैकेनिक ने अपने बेटे के लिए दस साल तक कबाड़ में पड़ी एक मोपेड और कई अन्य गाड़ियों के पार्ट्स से एक बेहतरीन बाइक बनाई है। हालांकि इस बाइक को बच्चे और बड़े भी चला सकते हैं।
अगर काम कुछ पाने का हुनर और जुनून हो तो कामयाबी पाने से कोई नहीं रोक सकता। इस मैकेनिक का नाम बंटी मिर्जा है। अपने इस कारनामे पर बंटी मिर्जा कहते हैं कि उनके दोस्त मनीष देवलिया की मोपेड खराब हो गई थी। तब मनीष ने मोपेड को बनवाने के लिए उनके गेराज में रख दिया था। कुछ समय के बाद मनीष ने गाड़ी को कबाड़ में बेच देने के लिए कहा। लेकिन कबाड़ी वाले ने इस मोपेड की कीमत मात्र 7 सौ रुपए लगाई।
अपने हुनर और मेहनत का सही इस्तेमाल कर के कोई भी व्यक्ति नाम कमा सकता है। 7 सौ रुपए की मामूली कीमत सुनकर बंटी ने मोपेड को बेचने का इरादा छोड़ दिया। लगभग 10 सालों तक यह मोपेड यूं ही गैराज में पड़ी रही थी।
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