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मर गया लोगो की आंख का पानी, दो गज जमीन के लिए शमशान घाट में मांग रहे है मुँह मांगे दाम

फरीदाबाद : यह मेरे शहर को हुआ क्या है जंहा देखो वहां रोते बिलखते लोग ,पूरे शहर पर मौत तांडव कर रही है एक तरफ तो सरकार अपनी शान में बड़े बड़े कसीदे बुन रही थी लेकिन हालातों के सामने सिस्टम की सभी व्यवस्था ठंडी पड़ गई । महामारी में लोगो के इलाज की सुविधा तो दूर की बात अंतिम समय मे दो गज जमीन का भी मुँह मांग दाम देना पड़ रहा है ।


दरअसल फरीदाबाद में आये दिन संक्रमित मामलों में इजाफा हो रहा साथ ही इस वजह से लोग अपनी जान भी गवा रहे हैं । फरीदाबाद के श्मशान घाट में एक चिता की आग ठंडी भी नही हो पाती उससे पहले और शवों का आना शुरु हो जाता हैं।

मर गया लोगो की आंख का पानी, दो गज जमीन के लिए शमशान घाट में मांग रहे है मुँह मांगे दाम


बतादे की फरीदाबाद के शमशान घाट में अन्य राज्य के लोग अंत्येष्टि करने के लिए आ रहे है ।बेकाबू होते हालातों को देखते हुए कुछ श्मशान घाटों में पैकेज सिस्टम लागू किया गया है

फरीदाबाद के बल्लभगढ़ तिंगाव रोड स्थित श्मशान घाट में लावारिस व आर्थिक रूप से असमर्थ लोगों के लिए निशुल्क दाह संस्कार की व्यवस्था की गई है

वही सब को जलाने में भी अधिकतम 3 या ₹4000 का खर्च रखा गया है

कुछ जगह लागू किया गया पैकेट सिस्टम

आपदा को अवसर बनाने में लोग 1 मिनट के लिए भी नहीं चूक रहे हैं इसका फायदा उठाने में कुछ श्मशान घाट के संचालक भी अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं बल्लभगढ़ के तिरखा कॉलोनी निवासी सत्येंद्र यादव ने बताया कि उनके पिता का देहांत महामारी के कारण हो गया था

पिता का शव लेकर जब वह अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पहुंचे तो वहां पर के सिस्टम लागू था यहां लकड़ी के 4500 सो रुपए चिता तैयार करने वाले से ₹2000 साफ सफाई रखें एकत्रित करने के ₹1000 पंडित के 11 सो रुपए वाहन का खर्च ₹21 बताया गया।

वही ओल्ड फरीदाबाद के निवासी नीरज गुप्ता ने बताया कि उनके भाई के शव की अंत्येष्टि के लिए उन्हें काफी खर्च करना पड़ा महामारी के कारण रिस्तेदार भी आने को तैयार नहीं थे ।श्मशान घाट संचालक से संपर्क करने पर पता चला कि शव को घर से लाने से लेकर अंत्योष्टि करने तक का खर्चा ₹20000 है उनके पास इस व्यवस्था को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

अब तक लाइने हॉस्पिटल के बाहर लग रही थी लेकिन इस महामारी के कहर नेअंतिम संस्कार के लिए भी लाइन में लगवा दी है शमशान के नियम को ताक पर रखकर सूरज ढलने के बाद भी अब शव जलाए जा रहे हैं

इसके अलावा पीपल गूलर बरगद के पेड़ की लकड़ी जलाने से भी लोग परहेज नहीं कर रहे हैं इसके मुताबिक मृतक के परिजन ही अंतिम अस्थियां लेकर जाते थे लेकिन अब कर्मचारियों द्वारा दी जा रही हैं मृतक के साथ रिश्तेदार भी शव यात्रा में शामिल नहीं हो पा रहे हैं

Avinash Kumar Singh

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