कोरोना महामारी का प्रकोप धार्मिक स्थलों को भी नहीं छोड़ रहा है | गुरु गोविंद सिंह जी के पूर्व जन्म का तपस्थान गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब की पवित्र यात्रा इस बार कोरोना की काली छाया पड़ने से तय समय पर आरंभ नहीं हो पा रही है। सिखों का यह पवित्र स्थान उत्तराखंड के चमौली जिले में स्थित है। इसकी ऊंचाई 15200 फीट है।
केदारनाथ और बद्रीनाथ की तरह यहां पर 6 महीने तक बर्फ जमी रहती है। हेमकुंड साहिब की पवित्र यात्रा को शुरू करने से पहले करीब डेढ़ महीने तक फौज के जवान बर्फ काटकर रास्ता बनाते हैं।
इस बार पिछले सालों के मुताबिक बर्फ काफी ज्यादा पड़ी है । गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट ही यहां की सारी व्यवस्था देखता है। ट्रस्ट के प्रमुख का कहना है कि सरकार की अनुमति के बाद तैयारियां शुरू की जाएंगी। मई से नवंबर के पहले सप्ताह तक यह यात्रा चलती है।
हर साल पवित्र हेमकुंड साहिब के कपाट 1 जून तक खुल जाते थे । पर इस बार कोरोना के कहर और भारी बर्फ जमी होने के कारण अभी तक कपाट नहीं खुले। गुरु गोविन्द सिंह साहब की साधना स्थली हेमकुंड साहब के दर्शन करने के लिये देश और दुनिया के लाखों तीर्थ यात्री लालायित रहते हैं।
पर अभी शायद गुरु की आज्ञा नहीं है । प्रकृति का आदेश नहीं है कि यही कारण है जो बाबा दर्शनों के लिए नहीं बुला रहे हैं और अदृश्य दुश्मन के आगे हर व्यक्ति घुटने टेक रहा है |
गुरुद्वारा श्री गोविंद घाट के सेवादार सेवा सिंह स्थानीय निवासियों व दो सेवादारों को लेकर पैदल श्री हेमकुंड साहिब तक बर्फ भरे रास्तों से होकर पहुंचे। सिंह ने बताया कि इस बार गोविंद धाम से पवित्र स्थान तक पहुंचने में 6 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई में 3 किलोमीटर रास्ते पर बर्फ ही बर्फ है।
इस बार ग्लेशियर काफी ऊंचे हैं। गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब तक पहुंचने में पहाड़ों पर बर्फ के ऊपर से होकर ही जाना पड़ता है। आसपास पर्वतों की चोटियों से घिरी बर्फ से ऐसा लगता है कि सब पवित्र स्थान पर मथा टेक रहे हैं |
हेमकुंड साहिब के निकट ही लक्ष्मण जी का मंदिर है । जिसे लोकपाल मंदिर भी कहते हैं। रामायण में एक प्रसंग है । जब भगवान श्री राम वनवास के बाद अयोद्धा लौटे । और राज सिंहासन पर बैठ कर राजकाज संचालित कर रहे थे ।
तो एक ऐसा प्रसंग आया कि लक्ष्मण जी इस अयोध्या से इस हिमालय में आ गये और अंखड साधना तपस्या में रत हो गये लोकपाल मंदिर मंदिर की दूरी हेमकुंड से ज़्यादा नहीं है |
यह बात तो सही है की जब तक ईश्वर का बुलावा नहीं होता आप उनके दर्शन के लिए नहीं जा सकते | इंसान ने प्रकृति को इतनी ठेस पहुंचाई है कि वह ईश्वर से भी इंसानों को रु-बा-रु नहीं होने दे रही है |
गत दिनों में बद्रीनाथ के कपाट जब खुले तो हर किसी का दिल भावनाओं में बह गया अगर वक़्त सही होता तो शायद घर पर नहीं केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा में इंसान होता |
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