आए दिन संक्रमण के मामले और संक्रमित मरीजों की मृत्यु के मामलों में सर्वाधिक जो बात समान निकल कर आती है, वह यह है कि इस संक्रमण से बुजुर्ग व्यक्ति लड़ पाने में असमर्थ साबित हो रहे हैं।
मगर वो कहते हैं ना कि अगर मन में मजबूत इरादा और हौसले बुलंद हो तो ना उम्र का तकाजा कुछ कर सकती है ना ही कोरोना आपका कुछ बिगाड़ सकता है। कुछ इसी कथन को सत्य कर दिखाया है 95 साल की बुजुर्ग महिला ने।
हम बात कर रहे हैं कोसली के गांव भडंगीं रहने वाली बुजुर्ग महिला चांदबाई की, जो करीबन एक सप्ताह पहले कोविड-19 से ग्रस्त हो गई थी। जैसे ही परिजनों को इस बात की सूचना मिली तो वह अधिक उम्र के चलते चांदबाई की सेहत को लेकर चिंतित हो गए थे।
बुजुर्ग महिला के बेटे सुबेदार मेजर हरबीर ने बताया कि 23 अप्रैल को तबीयत खराब होने पर मां की तबीयत खराब हुई और उनका कोरोना टेस्ट कराया गया। 28 अप्रैल को वह रिपोर्ट में पॉजिटिव आईं। आए दिन हॉस्पिटल से आने वाली फोन की घंटी उनके दिलों की धड़कन तेज कर देती थी, और उनकी सांसे थम सी जाती थी कि आखिर अस्पताल से आए कॉल पर क्या जानकारी मिलने वाली है।
वहीं अस्पताल में दृश्य बिल्कुल विपरीत थे, दूसरी ओर चांदबाई थीं कि उनमें जीने की ललक थी और अपने स्वस्थ्य होने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थीं। शायद यही कारण रहा कि चांदबाई के हौंसलें के सामने कोरोना ने भी घुटने टेक दिए।
इतनी उम्र में कोरोना की जंग जीतने पर चिकित्सक भी हैरान थे और यही कारण रहा कि बुधवार को जब चांदबाई को डिस्चार्ज किया तो पूरे स्टॉफ ने तालियां बजाकर उनका स्वागत किया। अब चांदबाई दूसरे मरीज एवं लोगों से भी अपील कर रहीं हैं कि कोरोना से डरे नहीं, हौंसला बुलंद रखें जीत अवश्य होगी।
इस तरह की वास्तविकता कहीं ना कहीं इस खतरनाक हालात के सामने जीने की और आत्मविश्वास की एक क्षमता को पैदा करने का काम करती है। देखा जाए तो जिस तरह से बुजुर्ग महिला ने संक्रमण को अपने जज्बे से मात दी है,
वैसे ही लोगों को थोड़ा धैर्य रखने की और जागरूक होने की जरूरत है। उन्हें समझना होगा कि हालात कितने ही नाजुक क्यों ना हो मगर उन्हें नासूर ना बनने दिया जाए। थोड़ा सा सब्र व धैर्य रखें और हालात को समय के ऊपर छोड़ दिया जाए।
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