विश्व साइकिल दिवस पर, एटलस साइकिल्स लिमिटेड ने वित्तीय संकट का हवाला देते हुए उत्तर प्रदेश में अपनी साहिबाबाद इकाई को बंद कर दिया। कंपनी ने बुधवार को जारी एक बयान में कहा कि कर्मचारियों की संख्या में भी कमी होगी क्योंकि यह दिन-प्रतिदिन के खर्चों को पूरा करने में असमर्थ है। यह पता चला है कि यूनिट में लगभग 450 कर्मचारी प्रभावित हो सकते हैं। इसके बंद होने का प्रभाव लुधियाना में भी महसूस किया गया, जहाँ कई इकाइयों का उपयोग एटलस को साइकिल के पुर्ज़ों की आपूर्ति के लिए किया जाता है।
यहां काम करने वाले कर्मचारी ने बताया कि वह 1999 से फैक्ट्री में काम कर रहे हैं। उन्हें हर महीने 13000 रुपये वेतन मिलता था। लॉकडाउन के बाद कंपनी ने उन लोगों को मार्च और अप्रैल में आधा वेतन दिया। मई का उन लोगों को कोई वेतन नहीं मिला और अब अचानक फैक्ट्री बंद कर दी गई। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अब उनका परिवार कैसे चलेगा उनके परिवार में 4 बच्चे हैं | बुधवार को जब मजदूर कंपनी में काम करने पहुंचे तो उन्होंने कंपनी के बाहर एक नोटिस लगा पाया जिसमें लिखा था कि एटलस के पास फैक्ट्री चलाने का पैसा नहीं है | साहिबाबाद में एटलस की यह फैक्ट्री 1989 से चल रही है |
1989 से यहां काम करने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि उनकी पूरी उम्र एटलस में काम करते हुए निकल गई। इस उम्र में उन्हें शायद कहीं और नौकरी भी नहीं मिलेगी। वह अब क्या करेंगे? परिवार कैसे चलेगा? उनके पास परिवार का पेट भरने के पैसे नहीं हैं | बुधवार को कर्मचारी ड्यूटी पर पहुंचे तो उन्हें गार्डों ने अंदर नहीं घुसने दिया | कर्मियों ने रोकने का कारण पूछा तो गार्ड ने बताया कि एटलस ने ले-ऑफ लागू कर दी है |
क्या होता है ले ऑफ ? जब किसी कंपनी के पास उत्पादन के लिए पैसे नहीं होते हैं, तो उस परिस्थिति में कंपनी कर्मचारियों की छंटनी न करके और किसी प्रकार का अतिरिक्त काम ना कराकर सिर्फ उसकी हाजिरी लगवाती है | कर्मचारी रोजाना गेट पर आकर अपनी हाजिरी देगा और उसी हाजिरी के आधार पर कर्मचारी को आधे वेतन का भुगतान किया जाएगा |
20 लाख करोड़ का रहत पैकेज तो प्रधानमंत्री जी दे चुके हैं, लेकिन उसका असर दिखाई नहीं पड़ता यही कारण है कि साहिबाबाद में 3 दशक पुरानी एटलस कंपनी बंद होने के कगार पर अगायी है | जो लोग यहाँ काम कर अपनी जीवनी चला रहे थे उनके ऊपर कोरोना का प्रहार दूसरों से कही अधिक फूटा है | सरकार को जल्द से जल्द संज्ञान लेना चाहिए |
एटलस साइकिल एक ऐसा नाम जो भारत में साइकिल का पर्यायवाची है उस से बहुत सी बचपन की यादें जनता की जुडी हुई हैं | जानी-मानी पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने कहा मैंने बचपन में एक एटलस साइकिल की सवारी की थी और उसकी यादें अब भी मेरे दिमाग में है | सुनीता नारायण की तरह आप भी पुराने समय में शाम होने का इंतज़ार करते होंगे ताकि अपने दोस्तों के साथ एटलस साइकिल पर गलियों में घूम सकें | दिल की यादें अक्सर रुलाया करती हैं लेकिन एटलस की यादें ऐसी हैं जो सोच कर बचपन तो याद करवा ही देती है साथ ही एक मुस्कुराहट भी चेहरे पर ले आती है | इसलिए अब एटलस साइकिल यादों में रहेगी सड़कों पर बहुत कम
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