उम्र छोटी होने से आपके हौसले छोटे नहीं हो जाते हैं। जो आप कर सकते हैं उसे कोई और नहीं कर सकता है। नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान दिल्ली बॉर्डर पर डटे हैं। उनकी गैरमौजूदगी में उनके बच्चे खेतीबाड़ी संभाल रहे हैं। कहीं बेटे जिम्मेदारी उठा रहे हैं तो कहीं बेटियां खेतों में सिंचाई से लेकर अन्य कामकाज कर रही हैं।
नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान 6 महीने से भी अधिक समय से दिल्ली को अपंग बनाये बैठे हैं। जो किसान यहां बैठे हैं उनके बच्चे खेत संभाल रहे हैं। हरियाणा के फतेहाबाद के गांव धारसूल में ऐसे ही एक परिवार के पुरुष सदस्यों के किसान आंदोलन में भाग लेने के चलते महिलाएं खेत में कस्सी चला रही हैं।
इस बिटिया की हिम्मत देख कर लोग इसे सलाम कर रहे हैं। पिता भी गर्व महसूस कर रहे हैं। धारसूल निवासी सतीश कुमार मंडेरना की 11 वर्षीय बेटी प्रिया भी कस्सी लेकर खेत में काम करने पहुँच गयी। सतीश खुद आंदोलन में हिस्सा लेने दिल्ली गए हुए हैं। प्रिया ने खेत में सिंचाई करने के लिए नाकाबंदी की और फिर ठंड में भी कस्सी लेकर डटी रही। इस दौरान परिवार की अन्य महिलाएं भी उसके साथ रहीं।
जिसने भी यह नज़ारा देखा वह महिलाओं के इस साहस के आगे झुक गया। इनका साहस अलग ही कहानी बयां करता है। प्रिया कक्षा छठी की छात्रा है। फिलहाल स्कूल बंद हैं इसलिए घर पर ही रहकर पढ़ाई करती हैं। विषम परिस्थितियों में भी जज्बे से भरी प्रिया की मांग है कि केंद्र सरकार इन कृषि कानूनों को तुरंत रद्द करें ताकि उनके पिता सहित देश के हजारों किसान वापस अपने घरों को लौट सकें।
किसान आंदोलन को अब बिना वजह आगे बढ़ाया जा रहा है। राजनीति इस आंदोलन में हावी हो गयी है। किसान नेता अपने हितों के लिए मासूम किसानों को मोहरा बनाये हुए हैं।
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