कोचिंग मिले न मिले नोट्स बने न बने अगर आपका हौसला और शिद्दत सच्ची है तो आप मुकाम हासिल कर लेते हैं। आइना कभी झूठ नहीं बोलता है, आइना लाकर दे दीजिए, उसी के सामने मैं तैयारी करूंगी। विश्वास दिलाती हूं कि मैं राज्य की सर्वाधिक प्रतिष्ठित परीक्षा पास करके इस क्षेत्र की पहली अफसर बिटिया बनूंगी। यह किसी कहानी की पंक्ति नहीं बल्कि हाल ही में बीपीएससी की घोषित 64 वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में सफल हुई नक्सल क्षेत्र माने जाने वाला रोहतास प्रखंड की बेटी सुप्रिया आनंद की हकीकत है।
मेहनत के साथ – साथ आपकी प्लानिंग भी बहुत महत्व रखती है। आपका विश्वास आपमें होना चाहिए। दूसरी तरफ देखें तो बचपन में बिना पिता का साया उठ जाने के बाद बच्चों को पढ़ाने के लिए निजी विद्यालय में लाइब्रेरी अटेंडेंट की मामूली नौकरी करने वाली जया हों या आंगनबाड़ी सेविका की बेटी अमृता। इन बेटियों के आगे बढ़ने का माद्दा व विपरीत परिस्थितियों की चुनौतियों ने इन्हें अब अफसर बिटिया बना दिया है।
अगर किसी चीज़ में कभी – कभी कुछ बदलाव किये जाएं तो यह हमें बहुत फायदा देता है। इन्होनें अपनी पढाई में एक अच्छा टाइमटेबल बनाया। आर्थिक कमी से भले ही वे न तो कोचिंग ज्वाइन कर पाई न ही नोट्स ही खरीद पाई बावजूद घर पर तैयारी कर पहले ही प्रयास में सफलता हासिल कर लिया। इन बेटियों की सफलता ने बता दिया है कि शिक्षा के प्रति न केवल नजरिया बदला है बल्कि परिवार वालों को बेटियों के प्रति भरोसा भी बढ़ा है।
बिना प्लानिंग के चीज़ें ठीक से नहीं हो पाती हैं। आपको प्लान करना पड़ता है। वर्ष 2018 में सुप्रिया ग्रैजुएट हो गई। पिता का सपना था कि बेटी अफसर बने। पिता के सपनों को पूरा करने के लिए वह तैयारी में जुट गई। बीपीएससी संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल हुईं। सुप्रिया बताती हैं कि वे घर पर पढ़ाई करके पहले पीटी व उसके बाद मेंस की परीक्षा पास की। साक्षात्कार के लिए पिता बाहर के कोचिंग में जाकर तैयारी करने के लिए कहे भी तो वह तैयार नहीं हुई।
लगन से की गई मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। इसका उदाहरण हैं ये बिटियां। जया को पहले प्रयास में ही सफलता हासिल हो गई। जया बताती हैं कि यह मुकाम उन्हें मां के संघर्ष व बेटी पर भरोसा के कारण मिल पाया है। जया का चयन आपूर्ति पदाधिकारी के पद पर हुआ है तथा उसे 1014 वीं रैंक मिली है।
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