गुरु अर्जुन देव का जन्म वैशाख बदी 7, संवत 1620 यानी 15 अप्रैल, 1563 ई. को गोइंदवाल साहिब में हुआ था।हर साल इस दिवस पर सिखों द्वारा प्रशाद के रूप में ठंडा पानी वा छोले का प्रशाद बांटा जाता है लेकिन कोरोना महामारी को देखते हुए इस साल नियमित रूप से इस दिन को फरीदाबाद में मनाया गया।
सिखों के 5वें गुरु अर्जन देव जी गुरु परंपरा का पालन करते हुए कभी भी गलत चीजों के आगे झुके नहीं। उन्होंने शरणागत की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान हो जाना स्वीकार किया, लेकिन मुगलशासक जहांगीर के आगे झुके नहीं। वे हमेशा मानव सेवा के पक्षधर रहे। सिख धर्म में वे सच्चे बलिदानी थे। उनसे ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा का आगाज हुआ। 5 दिनों तक उनको तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने शांत मन से सबकुछ सहा। अंत में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत् 1663 (30 मई, सन् 1606) को जब वे मूर्छित हो गए, तो उनके शरीर को रावी की धारा में बहा दिया गया।
अर्जन देव जी की बलिदान गाथा
मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के बाद अक्टूबर, 1605 में जहांगीर मुगल साम्राज्य का बादशाह बना। उसके शासन में आते ही अर्जन सिंह जी के विरोधी सक्रिय हो गए और वे जहांगीर को उनके खिलाफ भड़काने लगे।
उसी बीच शहजादा खुसरो ने अपने पिता जहांगीर के खिलाफ बगावत कर दी। तब जहांगीर अपने बेटे के पीछे पड़ गया, तो वह भागकर पंजाब चला गया। खुसरो तरनतारन गुरु साहिब के पास पहुंचा। तब गुरु अर्जन देव जी ने उसका स्वागत किया और आशीर्वाद दिया।
ओल्ड फरीदाबाद , क्यूआरजी रोड पर Baba jujhar singh jhata द्वारा ठंडा पानी बांटकर इस दिन को मनाया गया ।बात चीत के दौरान गुरु अर्जन सिंह के बारे में और भी बातें पता चली, गुरु के बारे में और उनकी गाथा कुछ पंक्तियों में बयां करना मुमकिन नहीं, इसलिए समाज के लोगों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए ।
By Vishal Rajput
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